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________________ क्योंकि जैसे ही तुम पैदा होते हो, झूठ की शुरुआत हो जाती है। जिस क्षण तुम परिवार का हिस्सा बनते हो, तुम एक झूठ का हिस्सा हो गए। जिस क्षण तुम समाज का हिस्सा बनते हो, तुम एक ज्यादा बड़े झूठ का हिस्सा हो गए। सारे समाज झूठ हैं-सुंदर ढंग से सजे हैं, पर झूठ हैं। तुम्हें खोज लेना है वह चेहरा जो तुम्हारे पास इस संसार में आने से पहले था-वह मौलिक कुंआरापन। तुम्हें पीछे लौटना है, भीतर जाना है। अपने केंद्र तक पहुंचना है, अपनी अंतस सत्ता तक आना है, जिसके पार जाने की फिर कोई संभावना नहीं रह जाती है। हर चीज को हटाते जाना है : तुम शरीर नहीं हो, शरीर बदलता रहता है; तुम मन नहीं हो, मन एक सतत प्रवाह है-विचार, विचार और विचारस्व प्रवाह। तुम भावनाएं नहीं हो, वे आती हैं और चली जाती हैं। तुम तो वह हो जो सदा रहता है और देखता रहता है। शरीर आता है और जाता है; मन आता है और जाता है। वह जो सदा मौजूद रहता है पीछे छिपा, वही है सत्य। वही होने का अर्थ है : सत्यप्रतिष्ठाया-वह जो सत्य में प्रतिष्ठित हो जाता है। 'वह बिना कर्म किए भी फल प्राप्त कर लेता है।' यहां तुम लाओत्सु की बात समझ सकते हो : अगर तुम अपने आंतरिक सत्य में प्रतिष्ठित हो जाते हो तो तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं रह जाती, चीजें अपने आप घटती हैं। ऐसा नहीं है कि तुम बस लेटे रहते हो अपने बिस्तर पर और सोए रहते हो; नहीं। लेकिन तुम कर्ता नहीं रहते। तुम सब कुछ करते हो, लेकिन तुम कर्ता नहीं रहते। अस्तित्व ही तुम्हारे माध्यम से करता है। तुम अस्तित्व को उपलब्ध हो जाते हो, एक माध्यम हो जाते हो। जिसे कृष्ण कहते हैं 'निमित्त' : समग्र के निमित्त मात्र हो जाते हो-वह प्रवाहित होता है तुमसे और काम करता है। तुम्हें परिणाम की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं; तुम्हें कोई योजना बनाने की चिंता करने की जरूरत नहीं। तुम जीते हो क्षण में, वर्तमान में, और संपूर्ण अस्तित्व तुम्हारा ध्यान रखता है और सब कुछ ठीक ही होता है। एक बार तुम अपनी अंतस सत्ता में प्रतिष्ठित हो जाते हो, तो तुम संपूर्ण अस्तित्व में प्रतिष्ठित हो जाते हो, क्योंकि तुम्हारी अंतस सत्ता समग्र अस्तित्व का एक हिस्सा है। तुम्हारा चेहरा समाज का हिस्सा है और तुम्हारा व्यक्तित्व संसार का हिस्सा है; तुम्हारी अंतस सत्ता समग्र अस्तित्व का हिस्सा है। अपने आत्यंतिक केंद्र में तुम परमात्मा हो। सतह पर तुम चोर हो सकते हो, सतह पर तुम साधु हो सकते हो; भले आदमी हो सकते हो, बुरे आदमी हो सकते हो; अपराधी हो सकते हो, जज हो सकते हो-हजारों तरह के नाटक, खेल-लेकिन गहरे में तुम परमात्मा हो। जब तुम उस भगवता में स्थित हो जाते हो, तो समग्र अस्तित्व तुम्हारे दवारा काम करने लगता है। क्या तुम देखते नहीं? किसी पेड़ को कोई चिंता नहीं होती फूलों की, वे बस खिलते हैं। किसी नदी को फिक्र नहीं होती सागर तक पहंचने की, वह कभी पागल नहीं होती और कभी किसी मनस्विद के पास
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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