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________________ मय स्वाभाविक है, और एक तरह से अच्छा ही है। इससे घबड़ाने की कोई बात नहीं, यह भय मदद करेगा। सारे भय बुरे नहीं होते और सारी बहादुरी अच्छी नहीं होती। कई बार बहादुरी केवल मूढ़ता होती है और कई बार भय एक बुद्धिमानी होता है। इस भय को मैं बुद्धिमानी कहता हूं क्योंकि तुम जानते हो कि ऐसा संभव है। अतीत में तुम चूकते रहे हो बहुत से बुद्ध पुरुषों को ज्यादा संभावना इसी बात की है कि तुम मुझे भी चूक जाओगे, क्योंकि तुम चूकने में बहुत कुशल हो चुके हो। तो अच्छा है भय। यह मदद करेगा। यह भय बुद्धिमानी है; यह तुम्हें चैन से न बैठने देगा और असजग न रहने देगा-यह तुम्हें फिर से न चूकने में मदद देगा। धन्यवाद दो इस भय को और याद रखो : भय सदा ही बुरा नहीं होता। जब तुम्हें रास्ते पर सांप मिल जाता है, तो तुम क्या करते हो? तुम छलांग लगा कर हट जाते हो। क्या तुम डरपोक हो? क्या तुम कायर हो? कोई मूर्ख कह सकता है कि तुम कायर हो। लेकिन तुम क्या सोचते हो, बुद्ध क्या करेंगे? वह तुम से ज्यादा तेज छलांग लगाएंगे; इतना ही करेंगे। लेकिन क्या बुद्ध भयभीत हैं सांप से? नहीं, सवाल भयभीत होने या न होने का नहीं है। वे होशपूर्ण हैं, और वे होश से जीते हैं। यह भय एक तरह की सजगता है। इसे 'छिपा भय' मत कहो; बल्कि इसे 'नई सजगता' कहो क्योंकि तुम किसी चीज को जिस ढंग से कहते हो, उससे बहुत अंतर पड़ता है। अगर तुम इसे 'भय' कहते हो, तो तुमने इसकी निंदा कर दी। अगर तुम इसे 'नई सजगता' कहते हो, तो तुमने इसे स्वीकार किया, इसकी प्रशंसा की। और अगर तुम सजग हो, तो इस बार तुम चूकोगे नहीं। सारी बात है-सजगता। यदि तुम सजग हो तो तुम नहीं चूकोगे। तुम अतीत में चूकते रहे क्योंकि तुम गहरी नींद में थे, एक सम्मोहन में थे। तुम्हारी आंखें बंद थीं। तुम चूकते रहे क्योंकि तुम बुद्ध को पहचान न पाए। एक बार तुम पहचान लेते हो कि बुद्ध सामने मौजूद हैं, तो कैसे चूक सकते हो तुम? एक बार तुम जान लेते हो कि यह हीरा है, तो तुम उसे फेंक नहीं सकते। तुमने दूसरे हीरे यह सोच कर फेंक दिए होंगे कि वे कंकड़पत्थर हैं। मैंने एक सूफी कहानी सुनी है। ऐसा हआ : एक फकीर, एक गरीब भिखारी एक छोटी सी झील के किनारे टहल रहा था। उसे अचानक एक थैला मिल गया। ब्रह्ममुहूर्त का समय था। सूर्योदय नहीं हुआ था, अभी भी अंधेरा था। उसने थैला खोला, टटोल कर देखा कि भीतर क्या है; पत्थर ही पत्थर भरे थे उसमें। झील के किनारे बैठे-ठाले करने को कुछ था नहीं, वह उन पत्थरों को फेंकने लगा झील में। वे पानी में गिरते, छपाक की आवाज होती, तरंगें उठतीं-उसे मजा आने लगा। फिर धीरे-धीरे सुबह हुई, अंधकार कम हआ। जब पर्याप्त रोशनी हई और उसने देखा कि वह क्या कर रहा था, तब एक अंतिम
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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