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________________ को बड़ा करता है, विवाह करता है, हजार चीजें करता रहता है वह, लेकिन किसी बुलावे की अनुगूंज उठती रहती है। किन्हीं घड़ियों में, सुबह-सुबह जब बाजार में सन्नाटा है और संसार अभी भी सोया ही हुआ है-वह उठ आता है.. वह डुबकी ले लेता है उस ध्यान में जिससे कि उसका परिचय हुआ था अपने पहले पच्चीस वर्षों में। रात को, जब सब सो जाते हैं तो वह बैठ जाता है अपनी शय्या पर......किसी निमंत्रण की पुकार उसके पीछे-पीछे चलती रहती है छाया की भांति। पचास वर्ष की अवस्था आते-आते वह संसार से हटने लगता, क्योंकि अब उसके बच्चे करीब-करीब पच्चीस वर्ष के हो जाते, वे जंगल से लौट आए होते। अब वे सम्हालेंगे संसार, अब उसका कर्तव्य पूरा लेकिन पचास वर्ष की अवस्था में वह सचमुच ही नहीं चला जाता जंगल। संस्कृत का शब्द है 'वानप्रस्थ'. वह मुंह कर लेता जंगल की ओर। वह घर को छोड़ता नहीं है, क्योंकि कुछ वर्ष अभी उसकी जरूरत होगी उन बच्चों को जो अभी गुरुकुल से आए हैं, ताकि वह उन्हें अपने जीवन का अनुभव दे दे, उन्हें व्यवस्थित होने में मदद करे। अन्यथा यह उन बच्चों के लिए बहुत अराजकता हो जाएगीकि वे घर आएं और बूढ़ा पिता जंगल चला जाए। तब तो संसार के साथ कोई संबंध ही न जुड़ेगा उनका। उन युवा बच्चों ने कुछ सीखा है, जाना है अस्तित्व के विषय में; अब उन्हें संसार के संबंध में कुछ सीखना है पिता से। लेकिन अब पिता पीछे होगा, बच्चे आगे आ जाएंगे। पिता पीछे हट जाएंगे, मां पीछे हट जाएगी-बह आगे आ जाएगी, बेटा आगे आ जाएगा। अब वे हैं असली मालिक, और माता-पिता सिर्फ इसलिए हैं कि अगर उन लोगों को किसी सलाह-मशवरे की जरूरत पड़े तो सलाह ली जा सकती है। लेकिन अब उनका रुख होता जंगल की तरफ; वे तैयार हो रहे होते। और जब वे पचहत्तर वर्ष के होते तो उनके बच्चे हो गए होंगे करीब पचास वर्ष के। अब माता-पिता तैयार होते जंगल वापस जाने के लिए-वें लौट जाते, वे फिर चले जाते जंगल। भारतीय जीवन शुरू होता जंगल से, फिर समाप्त होता जंगल में; शुरू होता स्वात से, समाप्त होता एकांत में; शुरू होता ध्यान से, समाप्त होता ध्यान में। असल में पचहत्तर वर्ष ध्यान के लिए होते, केवल पच्चीस वर्ष संसार के लिए होते; संसार कभी हावी नहीं हो पाता, एक अंतर्धारा ध्यान की बनी रहती। वस्तुत: सारा जीवन ही ध्यानमय था-केवल पच्चीस वर्षों के लिए व्यक्ति संसार को कर्तव्य की भाति जीता था। उन दिनों कोई जरूरत न थी तुम्हें ध्यान का स्वाद देने की, तुमने जाना ही होता था उसको। लेकिन अब चीजें बिलकुल भिन्न हैं। तुम नहीं जानते कि ध्यान क्या है। जब मैं कहता हूं 'ध्यान' तो बस एक शब्द गूंजता है तुम्हारे कानों में, कोई प्रतिसवेदन नहीं होता। यदि मैं कहता हूं 'नींबू' तो तुम्हारे
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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