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________________ पैदा होगा। पांचवीं पत्नी के साथ ही तुम्हारा अंतःकरण बेचैन होने लगेगा और वह कहेगा, 'यह ठीक साथ ही झंझट खड़ी हो जाएगी। तुम्हारा अंतःकरण कहने लगेगा, 'यह गलत है, यह ठीक नहीं, यह अनैतिक है। क्या कर रहे हो तुम? तुम्हें केवल एक ही स्त्री से प्रेम करना चाहिए और सदा-सदा के लिए करना चाहिए।' यह अंतःकरण क्या है? मुसलमान का अंतःकरण क्यों अलग होता है? हिंदू का अंतःकरण क्यों अलग होता है? मेरे बचपन में मेरे घर में टमाटरों की मनाही थी, क्योंकि मैं एक जैन परिवार में पैदा हआ, और टमाटर मांस जैसा लगता है। बस लगता ही है, होता तो उसमें ऐसा कुछ नहीं। टमाटर तो इतना निर्दोष और किसी को नुकसान पाने वाला है। लेकिन बचपन में मैंने टमाटर कभी नहीं खाए थे, क्योंकि मेरे परिवार में इजाजत न थी। और जब पहली बार एक मित्र के घर में मेरे सामने खाने में टमाटर आया तो मैंने वमन कर दिया। पूरा अंतःकरण...! मैं मान ही नहीं सकता था कि लोग टमाटर खाते हैं। टमाटर तो कितनी खतरनाक चीज है, मांस जैसा लगता है। कैसे उसको तुम खा सकते हो? भर दी जाती हैं और वहां से वे काम करना शुरू कर देती हैं। वे हैं देलगादो के इलेक्ट्रोड्स की भांति। बहुत सूक्ष्म... जहां भी तुम जाते हो, समाज तुम्हारे साथ आता है, तुम्हारे पीछे छिपा होता है; तुम्हारे भीतर ही होता है। अगर तुम समाज के विपरीत कोई काम करते हो, तो अंतःकरण कचोटने लगता है। भीतरी आवाज हिंदू के लिए और मुसलमान के लिए, और जैन के लिए, और ईसाई के लिए अलग-अलग नहीं हो सकती है। वास्तविक भीतरी आवाज तो एक ही होगी, क्योंकि सच्ची भीतर की आवाज समाज के सिखावन से पैदा नहीं होती। सच्ची भीतर की आवाज तो आती है तुम्हारे अस्तित्व के आत्यंतिक केंद्र से। लेकिन उस तक पहुंचने के लिए ध्यान की सारी अवस्थाओं से गुजरना होता है। जब तक सभी विचार तिरोहित नहीं हो जाते, तुम अपनी भीतर की आवाज नहीं सुन सकते। समाज ने तुम्हारे मन को इतना ज्यादा भर दिया है कि तुम जो भी सुनोगे, वह समाज द्वारा तुम्हें भीतर से नियंत्रित करने की कोशिश ही होगी। बाहर से समाज नियंत्रण करता है पुलिस द्वारा और अदालतो द्वारा। भीतर से वह नियंत्रण करता है ईश्वर द्वारा, अंतःकरण द्वारा, नैतिकता द्वारा, स्वर्ग-नर्क दवारा और ऐसी ही हजार चीजों दवारा। इसीलिए रेचन की जरूरत है। तुम नैसर्गिक नहीं हो, और केवल रेचन द्वारा ही तुम स्वयं को निर्भार कर पाओगे समाज के बोझ से; तुम मुक्त हो पाओगे समाज से। समाज से मुक्त होकर तुम प्रकृति के
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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