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________________ पार ले जाने वाली नाव. तुम नदी पार कर लेते हो और फिर तुम नाव को भूल जाते हो; तुम उसको अपने सिर पर ही नहीं ढोते रहते। बुद्ध बार-बार एक कहानी कहा करते थे कि एक बार ऐसा हुआ, पांच मूढ़ों ने नदी पार की। फिर वे सोच में पड़ गए, क्योंकि नाव ने उनकी इतनी मदद की थी। वर्षा का मौसम था और बाढ़ आई हई थी नदी में और नाव की सहायता के बिना नदी पार करना करीब-करीब असंभव ही था, तो उन्होंने कहा, 'यह नाव इतनी मददगार रही है कि हम इसे कैसे यहां छोड़ सकते हैं? हमें अपनी कृतज्ञता प्रदर्शितकरनी चाहिए।' तो वे बाजार में चले उसे सिर पर रखे हुए। लोगों ने पूछा, 'यह क्या कर रहे हो?' उन्होंने कहा, 'इस नाव ने इतनी मदद की है हमारी, अब इसे हम कैसे छोड़ सकते हैं? हम इसे जीवन भर ढोएंगे तो भी कृतज्ञता पर्याप्त न होगी। इस नाव ने हम लोगों का जीवन बचाया।' बुद्ध कहा करते थे, 'उन पांच मढ़ों की भांति मढ़ मत होना।' धर्म नाव है; जीवन लक्ष्य है। धर्म नाव है, आनंद मंजिल है। ध्यान रहे, सारी विधियां बस 'विधियां' ही हैं इस बात को भूलना मत। कोई विधि लक्ष्य नहीं है। एक दिन पतंजलि की पूरी बात छोड़ देनी है, क्योंकि पूरी बात विधि की ही है। और जब पतंजलि पूरे छूट जाते हैं तो अचानक तुम पाओगे, पीछे लाओत्स छिपे है-वह है मंजिल। मंजिल है 'होना'। करना लक्ष्य नहीं है, लक्ष्य है होना। सारी विधियां हैं कुछ करने के लिए; वे मदद देती हैं तुम्हें घर तक आने में। लेकिन जब तुम घर में प्रविष्ट हो जाते हो, तब तुम वाहन को भूल जाते हो कि तुम बैलगाड़ी में बैठ कर आए, या गधे पर बैठ कर आए, या नाव में बैठ कर आए। सारी विधियां बाहर छूट जाती हैं. तुम घर आ गए। ध्यान रहे, तुम रेचन को भी पकड़ ले सकते हो। तुम रेचन ही करते रह सकते हो, और तब वह भ एक आदत, एक पैटर्न बन जाता है। तो इसे पैटर्न नहीं बना लेना है। देखना, जब तक जरूरत हो, जारी रखना। धीरे - धीरे तम सजग होओगे यह बड़ी सक्ष्म बात है, क्योंकि घटना बड़ी सक्ष्म है –कि अब कोई ऊर्जा नहीं है : तुम चीखते हो, पर चीख में दम नहीं है; तुम कूदते हो, लेकिन तने: प्रयास करना पड़ता है। तब इसे छूट जाने देना. नाव को उठाए मत फिरना। 'विकास का वह कौन सा बिंदु है, जहां रेचन छोड़ा जा सकता है?' वह स्वयं ही छूट जाता है। तुम तो बस सजग रहते हो और देखते रहते हो उसको। और जब वह छुटने लगे तो चिपकना मत उससे, छट जाने देना उसको। पांचवां प्रश्न : पतंजलि के युग के बाद आदमी ने सब्लिमेशन की ऊर्ध्वगमन की क्षमता क्यों खो दी है?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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