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________________ एक अदभुत हाइकू। मैं दोहरा दूं 'धन्यभागी है वह व्यक्ति, जो सुबह सूरज के प्रकाश में ओस-कणों को तिरोहित होता देख कर यह नहीं कहता कि संसार क्षणभंगुर है, संसार माया है।' ऐसा कह कर स्वयं को सांत्वना देना बहुत आसान है। संतोष एक विधायक अवस्था है, सांत्वना दमन है। लेकिन संतोष की बात सांत्वना जैसी लगती है। एक आदमी मेरे पास आया और कहने लगा, 'मैं एक संतुष्ट व्यक्ति हूं। मेरी पूरी जिंदगी मैं संतोषी रहा हूं लेकिन कुछ घटता नहीं।' मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा, 'क्या चाहते हो तुम? संतोष पर्याप्त है। और क्या चाहिए तुमको?' उसने कहा, 'मैंने सभी शास्त्रों में पढ़ा है कि यदि कोई व्यक्ति संतोष रखे तो सब मिल जाता है। और मुझे तो कुछ मिला नहीं! और मैंने देखे हैं ऐसे लोग जो संतुष्ट नहीं हैं, और वे सफल हैं। मैं असफल हूं। मेरे साथ धोखा हुआ है।' यह आदमी संतोष दवारा किन्हीं आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश कर रहा था। यह संतोष झूठा है-वह चालाकी कर रहा है। और अस्तित्व के साथ तुम चालाकी नहीं कर सकते। तुम उसे धोखा नहीं दे सकते; तुम उसके हिस्से हो। कोई हिस्सा कैसे धोखा दे सकता है पूर्ण को? इससे पहले कि हिस्सा धोखा देने की सोचे, पूर्ण को पता चल जाता है। मैं भी कहता हूं कि सब मिल जाता है उस व्यक्ति को जो संतुष्ट है, क्योंकि संतोष ही सब कुछ है। यह कोई परिणाम नहीं है कि तुम्हें संतोष का अभ्यास करना होगा, ताकि तुमको सब कुछ मिल जाए-ईश्वर और आनंद और निर्वाण-नहीं। संतोष में ही सब कुछ है। एक संतुष्ट व्यक्ति को बोध होता है कि संतोष ही सब कुछ है; सब कुछ मिल ही चुका है। उसकी हा और-और विकसित होती है, उसका अंतस स्वीकार-भाव से और-और भरता जाता है, वह और-और अनुभव करता है कि चीजें वैसी ही हैं जैसी होनी चाहिए। यदि तुम निर्मल हो तो संतोष संभव होता है। संतोष है क्या त्र: वह है देखना, अस्तित्व को देखना कि वह कितना सुंदर है! संतोष अपने आप ही चला आता है यदि तुम देख सको कि सुबह कितनी सुंदर होती है, यदि तुम देख सको कि दोपहर कितनी सुंदर होती है, यदि तुम देख सको कि रात कितनी सुंदर होती है; यदि तुम देख सको कि जो अस्तित्व तुम्हें निरंतर घेरे हुए है, वह कैसा अदभुत है! कैसा अपूर्व चमत्कार घट रहा है, हर पल एक चमत्कार है..। लेकिन तुम तो पूरी तरह अंधे हो चुके हो। फूल खिलते हैं-तुम कभी देखते नहीं, बच्चे हंसते हैं-तुम कभी सुनते नहीं; नदियां गीत गाती हैं-तुम बहरे हो; सितारे नृत्य करते हैं-तुम अंधे हो, बुद्ध पुरुष आते हैं और तुम्हें जगाने का प्रयास करते हैं-तुम गहरी नींद में सोए हो। संतोष संभव नहीं है। संतोष तो उस सब के प्रति जागना है जो मौजूद है। यदि तुम देख सको उसकी एक झलक जो मिला ही हुआ है तो और ज्यादा की अपेक्षा करना अकृतज्ञता लगेगी। यदि तुम समग्र को देख सको, तो तुम अनुगृहीत होओगे। तुम अनुभव करोगे कि अत्यंत अनुग्रह उठ रहा है तुम्हारे भीतर। तुम कहोगे, 'सब
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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