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________________ इसलिए पतंजलि कहते हैं, पहले तम 'यम' के दवारा लोगों के साथ व्यवस्थित और निर्भार हो जाओ। झूठे मत होओ, आक्रामक मत होओ, मालकियत मत जमाओ, ताकि तुम्हारे और दूसरों के बीच कोई संघर्ष न रहे-एक संवाद हो। यह तुम्हारे अस्तित्व का पहला वर्तुल है-तुम्हारी परिधि, जहां तुम दूसरों की परिधियों को स्पर्श करते हो। इसे शात होना चाहिए, ताकि समग्र के साथ तुम्हारे संबंध मैत्रीपूर्ण हों। केवल उस गहन मैत्री में ही विकास संभव है। अन्यथा बाहर की चिंत यादा घेरे रहेंगी। वे तुम्हारा ध्यान आकर्षित करेंगी और तुम्हारा चित्त विचलित करेंगी और उसमें बहुत ऊर्जा खोएगी। और वे तुम्हें चैन न लेने देंगी और स्वात में न होने देंगी। यदि तुम दूसरों के साथ शांति से नहीं रह सकते तो अपने साथ भी शांति से नहीं रह सकते। कैसे रह सकते हो? तो पहली बात है : दूसरों के साथ शांतिपूर्ण होना, ताकि तुम स्वयं के साथ शात हो सकी। जब परिधि पर कोई लहरें नहीं होती, तो अचानक एक शांति, एक मौन उतर आता है तुम्हारे अंतस में। तो पहली बात है तुम्हारे और दूसरों के बीच संबंध। फिर दूसरा चरण है-नियम। इसका दूसरों से कुछ लेना-देना नहीं है; वह तुमने कर लिया, अब तुम्हें अपने साथ कुछ करना है। यदि तुम हिमालय की गुफा में बैठे हो, तो पहली बात संभव न होगी क्योंकि दूसरे वहां मौजूद न होंगे। लेकिन तुम्हें वहां भी दूसरे चरण का अभ्यास करना होगा, क्योंकि वह समाज से संबंधित नहीं है-वह तुम्हारे स्वात से संबंधित है।'यम' है तुम्हारे और दूसरों के बीच, 'नियम' है तुम्हारे और स्वयं के बीच। शुद्धता, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण- ये नियम पूरे करने होते हैं। प्रत्येक बात को गहराई से समझ लेना है। पहली बात है. शुद्धता, शौच। तुम संसार में हो शरीर के रूप में –सशरीर। यदि तुम्हारा शरीर बीमार हो तो तुम स्वस्थ कैसे हो सकते हो? यदि तुम्हारे शरीर में बहुत विष हैं तो वे तुम्हें मूर्च्छित करते हैं। यदि तुम्हारा शरीर बहुत अशुद्ध है, बहुत बोझिल है, तो तुम हलके नहीं हो सकते, तुम उड़ नहीं सकते। इसलिए अब तुम्हें अपने शरीर और उसकी शुद्धता के लिए कुछ करना होगा। ऐसे भोजन हैं जो तुम्हें पृथ्वी से बांध देते हैं; ऐसे भोजन हैं जो तुम्हें आकाश की ओर उन्मुख कर देते हैं। जीने के ऐसे ढंग हैं जहां कि तुम गुरुत्वाकर्षण के बहुत प्रभाव में होते हो; जीने के ऐसे ढंग हैं जहां कि तुम गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर उठने के लिए उपलब्ध हो जाते हो। दो नियम हैं : एक है गुरुत्वाकर्षण, दूसरा है ग्रेस, प्रसाद। गुरुत्वाकर्षण तुम्हें नीचे की ओर खींचता है, प्रसाद तुम्हें ऊपर की ओर खींचता है। विज्ञान केवल गुरुत्वाकर्षण को जानता है, योग प्रसाद को भी
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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