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________________ बस प्रेरणा होती है कुछ करने की। भीतर की आवाज सुनने का अर्थ है. हर चीज को आंतरिक शून्यता के ऊपर छोड़ देना। फिर वह तुम्हें मार्ग दिखाती है। यदि तुम शून्य चित्त से कुछ करते हो तो तुम सदा सम्यक होते हो। यदि तुम में आंतरिक शून्यता है तो कोई बात गलत न होगी, कोई बात गलत हो नहीं सकती। आंतरिक शून्यता में कुछ कभी गलत नहीं होता। तो यह पक्की कसौटी है सम्यक होने की, सदा सम्यक होने की। हां, शून्यता की एक अपनी आवाज होती है, मौन का एक अपना संगीत होता है, शांति का एक अपना नृत्य होता है; लेकिन तुम्हें पहुंचना होगा उस तक। मैं नहीं कह रहा हूं कि मन की सुनो। असल में मन तुम्हारा नहीं है। जब मैं कहता हूं : 'अपनी आवाज सुनो', तो मेरा मतलब है कि वह सब गिरा दो जो समाज ने तुम्हें दिया है। तुम्हारा मन समाज ने दिया है। तुम्हारा मन तुम्हारा नहीं है। वह है समाज, संस्कार; वह समाज से मिला है। शून्यता तुम्हारी है, मन तुम्हारा नहीं है। मन हिंदू है, मुसलमान है, ईसाई है; मन है कम्मुनिस्ट, गैरकम्युनिस्ट, पूंजीवादी। शून्यता कुछ भी नहीं है। उस शून्यता में तुम्हारे अस्तित्व का कुआंरापन होता है। उसको सुनो। जब मैं कहता हूं उसको सुनो, तो मेरा यह मतलब नहीं है कि कोई वहां तुमसे बोल रहा है। जब मैं कहता हूं उसको सुनो, तो मेरा मतलब है उसके प्रति उपलब्ध रहो, अपने पूरे प्राणों से सुनो उसे; और वह तुम्हें ठीक दिशा देगा। और वह कभी किसी को गलत दिशा नहीं देता। शून्यता से जो कुछ आता है, सुंदर होता है, सत्य होता है, शुभ होता है, एक शुभाशीष होता है। आज इतना ही। प्रवचन 49 - योग का दूसरा चरण: अंतस शोधन योग-सूत्र (साधनापाद) शौचसंतोषतप: स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमा:।। 32 / /
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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