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________________ प्रकट करते हो। बहुत छोटी होती है, लेकिन वह विकसित हो सकती है और बड़ी घटना बन सकती है। या फिर वह व्यक्ति कहेगा, 'मैंने खोजा नहीं। मैंने सुना है लोगों को बहुत कुछ कहते हुए, लेकिन मैं जानता नहीं। जहां तक मेरा संबंध है मैं दोनों में से किसी बात को नहीं जानता हूं है या नहीं है, कुछ नहीं जानता हूं। दोनों बातें असंभव लगती हैं; मैं कुछ नहीं कह सकता।' यह है बुद्धिमत्ता, और यह आदमी जान सकता है किसी दिन, क्योंकि ऐसी बुद्धिमत्ता द्वारा खोज की संभावना है। यदि तुम सिद्धांतो से, मतो से भरे हो, शास्त्रों के बोझ से दबे हो, तो तुम कभी बुद्धिमान न हो पाओगे; तुम सदा ही मूढ़ रहोगे। मन है अतीत-जीवंत पर छाई हुई मृत चीज। जैसे कोई बादल तुम्हें घेरे हुए हो : उसके पार तुम देख नहीं सकते, दृष्टि साफ नहीं होती, हर चीज धुंधली-धुंधली होती है। इस बादल को विदा हो जाने दो। बिना उत्तरों के रहो : बिना निष्कर्षों के, बिना दर्शन-सिद्धांतो के, बिना धर्मों के रहो। खुले रहो, पूरी तरह खुले रहो, अत्यंत संवेदनशील रहो, और सत्य घटित हो सकता है तुम्हें। खुले हुए होना है बुद्धिमान होना। यह जानना कि तुम नहीं जानते, बुद्धिमान होना है; यह जानना कि अ-मन से द्वार खुलता है, बुद्धिमान होना है। अन्यथा, मन मूढ़ता ही है। चौथा प्रश्न: आपने कहा कि आपने ऐसी कोई स्त्री कभी नहीं देखी जो सच में बुदधिमान हो। लेकिन ऐसा कैसे है कि आश्रम में स्त्रियां ही सारी व्यवस्था संभाल रही हैं? क्या कि मैं नहीं चाहता कि आश्रम बुद्धि द्वारा चले। मैं चाहता हूं कि यह हृदय द्वारा संचालित हो। मैं नहीं चाहता कि यह पुरुष-मन द्वारा चले। मैं चाहता हूं कि यह स्त्री-हृदय द्वारा संचालित हो। क्योंकि मेरे देखे स्त्रैण होने का मतलब है खुले होना, ग्राहक होना। स्त्रैण होने का मतलब है पैसिव होना। स्त्रैण होने का मतलब है स्वीकार- भाव। स्त्रैण होने का मतलब है प्रतीक्षा करना। स्त्रैण होने का मतलब है शीघ्रता और तनाव में न होना; स्त्रैण होने का मतलब है प्रेमपूर्ण होना। हां, आश्रम का संचालन स्त्रियों के हाथ में है, क्योंकि मैं चाहता है कि आश्रम हृदय दवारा संचालित हो। मैंने कहा कि मैंने ऐसी कोई स्त्री कभी नहीं देखी जो सच में बुद्धिमान हो। मेरा मतलब है 'बौद्धिक'; वह बुद्धिमत्ता नहीं जिसकी मैं अभी बात कर रहा था। वह बुद्धिमत्ता न तो पुरुष होती है और न
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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