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________________ ये पांच व्रत तुम्हें शुद्ध करने के लिए हैं, ताकि तुम शक्ति के अवतरण के लिए पात्र बन सकी और शक्ति के अवतरण से तुम दूसरों के लिए एक मंगल और एक आशीष हो सको। ये व्रत बहुत जरूरी हैं। किसी को उन्हें छोड़ना नहीं चाहिए। तुम छोड़ सकते हो। असल में उन्हें छोड़ कर बढ़ जाना उनमें से गुजरने की अपेक्षा ज्यादा सरल है, क्योंकि वे कठिन हैं। लेकिन तब तुम्हारा भवन बिना नींव का होगा, किसी भी दिन गिर जाएगा, किसी भी दिन ढह जाएगा; वह पड़ोसियों की जान ले सकता है, शायद तुम्हें ही मार डाले। यह पहली बात है समझ लेने की। दूसरी बात : अभी कल ही नरेन्द्र ने एक प्रश्न पूछा था, एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा था। उसने कहा, 'संस्कृत में यम का अर्थ होता है मृत्यु और यम का अर्थ अंतर- अनुशासन भी होता है। क्या इन दोनों के-मृत्य और अंतर-अनुशासन के बीच कोई संबंध है?' बिलकुल है। उसे भी समझ लेना है। संस्कृत बड़ी अर्थगर्भित भाषा है। असल में संसार में दूसरी कोई भाषा नहीं जो इतनी अर्थगर्भित हो। और प्रत्येक शब्द बड़ी सावधानी और परिश्रम से निर्मित किया गया है। संस्कृत कोई प्राकृतिक भाषा नहीं है। दूसरी सारी भाषाएं प्राकृतिक हैं। संस्कृत शब्द का अर्थ ही है निर्मित, परिष्कृत-प्राकृतिक नहीं। भारत की प्राकृतिक भाषा प्राकृत कहलाती है। प्राकृत का अर्थ है प्राकृतिक. जो सहज प्रयोग से बनी। संस्कृत एक परिष्कृत घटना है। वह प्राकृतिक फूलों के समान नहीं है, वह इत्र की भांति है, परिमार्जित। बड़ी सावधानी और सचेतन प्रयास से एक-एक शब्द को निर्मित किया गया है और उस पर सोच-विचार किया गया है और चिंतन-मनन किया गया है, जिससे कि सारी संभावनाएं इसमें समाहित हो जाएं। इस 'यम' शब्द को समझ लेना है। इसका अर्थ होता है मृत्यु का देवता, इसका अर्थ अंतर- अनुशासन भी होता है। लेकिन मृत्यु और अंतर- अनुशासन के बीच ऐसा कौन सा महत्वपूर्ण अंतर्संबंध हो सकता है? कोई संबंध दिखाई नहीं पड़ता, फिर भी संबंध है। इस धरती पर अब तक दो तरह की सभ्यताएं रही हैं-दोनों ही फणी हैं, दोनों ही असंतुलित हैं। अभी तक ऐसी सभ्यता को विकसित कर पाना संभव नहीं हुआ है जो कि समग्र हो, संपूर्ण हो, अखंड हो। पश्चिम में अब कामवासना को पूरी स्वतंत्रता मिल रही है; लेकिन तुमने शायद ध्यान न दिया होमृत्यु का दमन हुआ है। मृत्यु की कोई बात नहीं करना चाहता; हर कोई कामवासना की ही बात कर रहा है। तमाम अश्लील साहित्य मौजूद है कामवासना के विषय में, प्लेबॉय जैसी पत्रिकाएं हैं-अश्लील, विकृत, बीमार, न्यूरोटिक, विक्षिप्त। कामवासना के विषय में एक रुग्णता है पश्चिम में। लेकिन मृत्यु की कोई बात भी नहीं करता है। यदि तुम मृत्यु के विषय में बात करते हो तो लोग सोचेंगे कि तुम विकृत हों-'क्यों तुम बात कर रहे हो मृत्यु की?' खाओ, पीओ, मौज करो-यही है आदर्श।'तुम मृत्यु को क्यों ले आते हो बीच में? उसे बाहर हटाओ। मत बात करो इस विषय में।'
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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