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________________ साधारणतया वर्जित है साधक के लिए, तंत्र में उसकी स्वीकृति है, लेकिन स्वीकृति है ऐसी शर्तों के साथ कि यदि तुम शर्तों को भूल जाते हो तो तुम पूरी बात ही चूक जाते हो । व्यक्ति संभोग में उतर सकता है, लेकिन स्खलन नहीं होना चाहिए। यदि स्खलन होता है, तो वह साधारण कामवासना हुई; तब वह तंत्र नहीं । यदि तुम संभोग में उतरते हो और कोई स्खलन नहीं होता, घंटों तुम रहते हो स्त्री के साथ और कोई स्खलन नहीं होता, तो यह तंत्र है। तो यह एक उपलब्धि है। शराब पीने की अनुमति है, लेकिन होश खोने की अनुमति नहीं है। यदि तुम होश खो देते हो तो तुम साधारण शराबी हो-तंत्र को बीच में लाने की आवश्यकता नहीं है। - मांस की स्वीकृति है; तुम्हें खाना पड़ता है मांस कई बार तो मनुष्य का मांस भी मुर्दों का मांस - लेकिन तुम्हें विरक्त रहना होगा। तुम्हें अविचलित रहना होगा- तुम्हारी चेतना में एक कंपन तक नहीं होना चाहिए कि कुछ गलत....।' तंत्र कहता है कि प्रत्येक बंधन के पार जाना है, और अंतिम बंधन है नैतिकता - उसके भी पार जाना है। जब तक तुम नैतिकता के पार नहीं चले जाते तुम संसार के पार नहीं गए होते। तो भारत जैसे देश में जहां कि शाकाहार बहुत ही गहरे तल तक उतर चुका है भारतीय चेतना में, मास खाने की अनुमति थी, लेकिन यह उस ढंग की अनुमति न थी जैसे कि मांस खाने वाले खाते हैं। व्यक्ति को जीवन भर तैयार होना पड़ता था इसके लिए उसे शाकाहारी रहना पड़ता था; साधक के रूप में उसे शाकाहारी रहना पड़ता था। वर्षों बीत जाएंगे - दस वर्ष, बारह वर्ष वह शाकाहारी रहा, उसने संभोग नहीं किया किसी स्त्री के साथ, उसने कोई शराब नहीं पी और उसने किन्हीं और नशों का सेवन नहीं किया। फिर बारह वर्ष पंद्रह वर्ष बाद, बीस वर्ष बाद, गुरु उसे अनुमति देगा कि अब उतरो कामवासना में, लेकिन ऐसी श्रद्धा से स्त्री का संग करो कि स्त्री देवी जैसी ही हो; यह कामुकता नहीं होती। और उस आदमी को जो कि स्त्री के संग होता है, उसकी पूजा करनी होती है, उसके पांव छूने होते हैं और यदि हलकी सी भी कामवासना उठने लगती है, तो वह अयोग्य हो जाता है तो वह अभी इसके लिए तैयार नहीं है। यह एक बड़ी तैयारी थी और बड़ी परीक्षा थी कठिनतम परीक्षा थी जो कि कभी निर्मित की गई मनुष्य के लिए। कोई आकांक्षा नहीं, कोई वासना नहीं, उसे स्त्री के प्रति ऐसी भाव- दशा रखनी पड़ती जैसे कि वह उसकी मां हो। यदि गुरु कहता है, और देखता है कि वह ठीक है- अब वह बच्चे की भांति प्रवेश कर रहा है स्त्री में, पुरुष की भांति नहीं, और बच्चे की ही भांति वह भीतर रहता है स्त्री के, उसमें कोई कामवासना नहीं उठ रही होती : उसकी श्वास प्रभावित नहीं होती; उसकी शरीर - ऊर्जा प्रभावित नहीं होती, घंटों वह स्त्री के साथ रहता है और कोई स्खलन नहीं होता; एक गहन मौन छाया रहता है यह एक गहन ध्यान है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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