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________________ जब भी तम्हें लगे कि किसी चीज का मेरे दवारा खंडन हो रहा है, तो उससे घबड़ा मत जाना; मैं विरोधाभासी हूं। तुम्हें अच्छी तरह समझ लेना है इसे। मैं अपना ही खंडन करता जाता हूं। यह भी एक विधि है जिसका मैं उपयोग कर रहा हूं। यदि तुम अविचलित रहते हो, तो तुम्हारे भीतर कुछ घनीभत होता है, एक क्रिस्टलाइजेशन होता है। मैं खंडन करता ही रहंगा। अपनी कही हर बात का मैं खंडन करूंगा। मैं अपना एक भी वक्तव्य बगैर खंडन किए नहीं रहने दूंगा। इसमें एक विधि है : मैं नहीं चाहता कि तुम किसी एक दृष्टिकोण को कड़ कर बैठ जाओ। मैं यह भी नहीं चाहता कि तम मेरी बातों को पकड़ कर बैठ जाओ। तो एक ही रास्ता है : मुझे अपनी ही बातों का खंडन करना होगा। एक घड़ी आएगी, तुम समझ लोगे कि यह व्यक्ति तुम्हें कोई सिद्धात नहीं दे रहा है, क्योंकि हर बात का खंडन किया जा रहा है। कोई सिद्धात बचता नहीं। हर बात नकार देती है हर दूसरी बात को; तुम एक गहन शून्यता में छूट जाते हो। यही मेरा प्रयास है। मैं तुम्हें कोई दार्शनिक सिद्धात नहीं दे रहा हूं। यदि मैं दार्शनिक होता तो मैं कभी अपना खंडन न करता, मैं सुसंगत होता। लेकिन मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं; ज्यादा से ज्यादा तुम मुझे कवि कह सकते हो। कवि से तुम कभी किसी सुसंगति की आशा नहीं रखते। तुम जानते हो कि कवि कवि है; वह किसी व्यवस्था का निर्माता नहीं है। वह आज कुछ कहता है और कल कुछ और कहता है। लेकिन यदि तुम मुझे समझते रहे, तो एक घड़ी आएगी कि जो कुछ भी मैंने कहा है उसका खंडन कर दिया जाएगा-मेरे ही द्वारा-तुम एक शून्यता में छूट जाओगे, कुछ पकड़ने को नहीं होगा-कोई सिद्धात नहीं, कोई व्यवस्था नहीं, कोई शास्त्र नहीं। और उस शून्य में ही तुम समझ पाओगे मुझे, क्योंकि मैं कुछ कह नहीं रहा हूं-यहो मैं तुम्हारे लिए एक मौजूदगी हूं। मैं तुम्हें कोई संदेश नहीं दे रहा हूं मैं ही हूं संदेश। केवल जब तुम पूरी तरह शून्य होते हो, तभी तुम इसे समझ पाओगे। और दूसरी बात, यदि मैं कहता हूं कि साईंबाबा केवल मदारी हैं और रहस्यदर्शी संत नहीं हैं तो मैं केवल एक तथ्य कह रहा हूं उनकी निंदा नहीं कर रहा हूं उनकी बिलकुल आलोचना नहीं कर रहा हूं। यदि मैं कहता हूं. अभी सुबह है, नौ बजे हैं; यदि मैं कहता हूं : अभी दिन है और रात नहीं है, तो क्या मैं निंदा कर रहा हूं रात की 3: क्या मैं आलोचना कर रहा हूं रात की? मैं तो केवल एक तथ्य बता रहा हूं। सत्य साईंबाबा मदारी हैं और रहस्यदर्शी संत नहीं हैं-मेरे लिए यह एक तथ्य है। मैं उनकी आलोचना नहीं कर रहा हूं मैं उनके खिलाफ नहीं हूं।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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