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________________ आपने इधर कहा कि केवल संबुद्ध व्यक्ति ही प्रेम कर सकता है। कई और मौकों पर आपने यह भी कहा है कि जब तक कोई प्रेम नहीं करता, संबुदध नहीं हो सकता तो किस दवार से प्रवेश करें? पछा है आनंद प्रेम ने। वह द्वार पर ही खड़ी हुई है वर्षों से। असली बात है प्रवेश करना, द्वार से कुछ लेना-देना नहीं है। तुम किस वार से प्रवेश करते हो यह बात व्यर्थ है। कृपा करके प्रवेश करो! यदि तुम प्रेम के द्वार से प्रवेश करना चाहते हो, तो प्रेम के द्वार से प्रवेश करो। बुद्धत्व पीछे-पीछे चला आएगा; वह पराकाष्ठा है प्रेमपूर्ण हृदय की। यदि तुम भयभीत हो प्रेम से, जैसे कि लोग भयभीत हैं, क्योंकि समाज ने तुम्हें बहुत ज्यादा भयभीत कर दिया है प्रेम और जीवन के प्रति। समाज सोचता है कि प्रेम खतरनाक है। वह है। तुम नहीं जानते कि तुम कहां जा रहे हो। वह एक तरह का पागलपन है-सुंदर है बात, लेकिन फिर भी है तो पागलपन। तो यदि तुम भयभीत हो प्रेम से तो ध्यान में प्रवेश करो, ध्यानी बनो। यदि तुम ध्यान में गहरे उतरते हो तो तुम अनुभव करोगे, अचानक ऊर्जा का एक उमडाव, और तुम प्रेम से भर जाओगे। लेकिन कृपा करके द्वार पर ही मत खड़े रहो। द्वार भी तुम से बहुत थक गए हैं। कुछ करो और भीतर प्रविष्ट होओ। बहुत समय हुआ, तुमने बहुत देर प्रतीक्षा कर ली है। आठवां प्रश्न : इन दिनों पूना के समाचार-पत्र आपके आपके आश्रम के और आपके शिष्यों के विरुद्ध बहुत प्रचार कर रहे हैं। इस बात ने सामान्यजन के मन में बहुत सी गलतफहमियां पैदा कर दी हैं। जो साधक इन्हीं लोगों के बीच रहता है उसे कैसे इस स्थिति का सामना करना चाहिए? तम्हें सामना बिलकुल नहीं करना चाहिए; तुम्हें तो हंसना चाहिए। और इस बारे में गंभीर मत हो जाना। यदि तुम इसका आनंद ले सकते हो तो आनंद लो–लेकिन सामना करने के चक्कर में मत पड़ जाना, प्रतिक्रिया मत करना। और मेरा बचाव करने की कोशिश मत करना-कोई मेरा बचाव नहीं कर सकता। और मेरे लिए तर्क जुटाने की कोशिश मत करना-कोई मेरे लिए तर्क नहीं जुटा सकता
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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