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________________ और आकांक्षा करता है, वह सदा ही तनावपूर्ण होता है। उसके आस-पास एक सूक्ष्म बेचैनी होती है, उसे कभी भी चैन नहीं होता। कैसे तुम्हें चैन हो सकता है यदि तुम्हें कहीं जाना हो, कहीं पहुंचना हो? तुम बैठे हुए हो सकते हो, लेकिन तुम चल ही रहे होओगे। ऊपर-ऊपर तुम शांत दिखोगे, लेकिन भीतर से तुम बेचैन हो छोड़ो यह नासमझी आकांक्षा से कभी किसी को बुद्धत्व उपलब्ध नहीं हुआ है। इसीलिए सारे बुद्ध पुरुष जोर देते हैं कि आकांक्षारहित हो जाओ। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जब तुम आकांक्षारहित होते हो तो तुम निर्वाण या बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाओगे; मैं यह कह रहा हूं कि जब तुम आकांक्षारहित होते हो, तो तुम ही होते हो निर्वाण, तुम होते हो बुद्धत्व। आकांक्षा है तुम्हारे भीतर की अशांति, झील में उठी तरंगों की भांति - तरंगें खो जाती हैं तो झील शांत हो जाती है। सांसारिक चीजों की इच्छाओं को गिरा देना आसान है, बहुत आसान है। असल में उनसे चिपके रहना नितांत मूढता है। केवल मूद्र व्यक्ति ही सांसारिक चीजों से चिपके रहते हैं, क्योंकि कोई भी देख सकता है कि वे तुम से छिनने ही वाली हैं। सारे परिग्रह व्यर्थ हैं, बेकार हैं। और जिसके पास भी थोड़ी सी बुद्धि है, वह सजग हो सकता है कि चीजों को इकट्ठा किए जाना तुम्हें कोई समृद्धि न देगा; बल्कि इसके विपरीत, वह तुम्हें और और दरिद्र बनाएगा। जितनी ज्यादा चीजें तुम्हारे पास होंगी, उतना ज्यादा तुम अनुभव करोगे कि तुम रिक्त हो । - एक समृद्ध व्यक्ति–गहरे तल पर - बहुत दरिद्र हो जाता है। तुम सम्राटों से ज्यादा बड़े भिखारी नहीं खोज सकते। वे भलीभांति जानते हैं कि उनके पास सब कुछ है जिसकी वे आकांक्षा कर सकते थे, तो पहली बार वे सजग होते हैं कि भीतर कुछ बदला नहीं है. कोई संतुष्टि घटित नहीं हुई, कोई परितृप्ति नहीं आई। भीतर उतनी ही अशांति है जितनी पहले थी; सारा प्रयास बेकार गया, और सारा जीवन व्यर्थ गंवाया भाग-दौड़ में। तुम सांसारिक आकांक्षाओं को मोक्ष, निर्वाण, बुद्धत्व ईश्वर । नहीं, सांसारिक आकांक्षाओं को गिरा देना कठिन नहीं है। लेकिन जब गिरा देते हो तो मन तुरंत पारलौकिक आकांक्षाए निर्मित कर लेता है अब तुम इनके पीछे भागते हो। स्थिति वही की वही रहती है-तुम आकांक्षा में ही जीते हो। विषय का सवाल नहीं है, असली सवाल यह है कि तुम आकांक्षा करते हो या नहीं? असली सवाल यह नहीं है कि किसकी आकांक्षा करते हो। तुम्हारे सारे आध्यात्मिक - तथाकथित आध्यात्मिक - शिक्षक तुम्हें भ्रांति में डाल देते हैं, क्योंकि वे कहते हैं, ' आकांक्षा का विषय बदल दो। सांसारिक चीजों की आकांक्षा मत करो; परमात्मा की आकांक्षा करो।' लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि यदि तुम परमात्मा की आकांक्षा करते हो, तो परमात्मा भी सांसारिक विषय हो जाता है। मेरे देखे संसार की परिभाषा ऐसी है : जिस चीज की आकांक्षा की जा सके वह संसार है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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