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________________ यह आदमी जो हमारी जिंदगी गड़बड़ किए दे रहा है! और उन्होंने संन्यास ले लिया। अब पत्नी खड़ी कर रही है मुसीबत! अब पत्नी एकदम खिलाफ है। और वे बहुत सीधे –सरल आदमी हैं, सचमुच सुंदर। और वे मुझे लिखते हैं : 'मैं क्या करूं? क्योंकि मैं प्रेम करता हूं उसे, लेकिन जब से उसने सुना है कि मैंने संन्यास ले लिया है, वह तो बिलकुल बदल गई है।' इसी भांति चीजें चलती हैं। हर कोई प्रयत्न. कर रहा है दूसरे पर नियंत्रण करने का। यम को साधने वाला व्यक्ति स्वयं को साधता है, दूसरों को नहीं। दूसरों को तो वह स्वतंत्रता देता है। तुम दूसरों पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हो, लेकिन स्वयं पर कभी नहीं। यम का व्यक्ति स्वयं को संयमित करता है और दूसरों को स्वतंत्रता देता है। वह इतना ज्यादा प्रेम करता है दूसरों को कि उनको स्वतंत्रता दे सकता है। और वह इतना ज्यादा प्रेम करता है स्वयं को कि अपने को संयमित करता है। इसे समझ लेना है : वह स्वयं को इतना ज्यादा प्रेम करता है कि वह अपनी ऊर्जाओं को बिखरा नहीं सकता, उसे एक दिशा देनी होती है। फिर शरीर के लिए हैं नियम और आसन। नियमित जीवन बहुत स्वास्थ्यप्रद होता है शरीर के लिए, क्योंकि शरीर एक यंत्र है। यदि तुम अनियमित जीवन जीते हो तो तुम शरीर को उलझन में डाल देते हो। आज तुमने भोजन किया एक बजे, कल तुम करते हो ग्यारह बजे; परसों तुम करते हो दस बजेतुम उलझन में डाल देते हो शरीर को! शरीर की एक आंतरिक जैविक घड़ी होती है; वह एक नियम में चलती है। यदि तुम रोज उसी समय पर भोजन करते हो तो शरीर सदा ऐसी स्थिति में होता है जहां कि वह समझता है कि क्या हो रहा है, और वह तैयार होता है उसके लिए-रस प्रवाहित हो रहे होते हैं पेट में बिलकुल ठीक समय पर। अन्यथा जब भी तुम भोजन करना चाहो, तुम कर सकते हो, लेकिन रस प्रवाहित न हो रहे होंगे। और यदि तुम भोजन करते हो और रस नहीं प्रवाहित हो रहे होते हैं, तो भोजन ठंडा हो जाता है; फिर उसे पचाना कठिन होता है। रसों को वहा तैयार होना चाहिए भोजन को पचाने के लिए। जब भोजन गरम होता है, तब तुरंत पाचन आरंभ हो जाता। भोजन का छह घंटे में पाचन हो सकता है यदि रस तैयार हों, प्रतीक्षा कर रहे हों। यदि रस तैयार नहीं हैं तो बारह या अठारह घंटे लग जाते हैं। तब तुम बोझिलता अनुभव करते हो, आलस्य लगता है। तब भोजन तुम्हें जीवन तो देता है, लेकिन तुम्हें विशुद्ध जीवन नहीं देता है। वह तुम्हारी छाती पर पड़े किसी बोझ जैसा लगता है; तुम किसी तरह उसे ढोते रहते हो, खींचते रहते हो। और भोजन बड़ी विशुद्ध ऊर्जा बन सकता है लेकिन तब एक नियमित जीवन की जरूरत है। तुम रोज दस बजे सो जाते हो. शरीर को पता है-ठीक दस बजे शरीर तुम्हें खबर कर देता है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इसी से जकडू जाओ, कि जब तुम्हारी मां मर रही हो तब भी तुम दस बजे सो जाओ। मैं यह नहीं कह रहा है। क्योंकि लोग किसी भी पागलपन में पड़ सकते हैं।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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