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________________ है। जब कभी वर्षा हो तो फिर से नदी बहने लगेगी। जब कभी वहां ऊर्जा होती है, तो फिर से सांप अपना फन उठा लेगा। सांप मरा नहीं है मात्र मूर्च्छा में है, क्योंकि ऊर्जा उपलब्ध नहीं हो रही है। उपवास एक चालाकी है झूठी ध्यानमयी अवस्था निर्मित करने की। और उपवास बनावटी ब्रह्मचर्य निर्मित करने की चालाकी भी है- क्योंकि जब तुम उपवास रखते हो, तो ऊर्जा प्रबल नहीं होती, और काम - केंद्र ऊर्जा नहीं पा सकता। फिर प्रश्न उठ खड़ा होता है व्यवस्था विज्ञान का व्यक्ति भोजन द्वारा जीवित रहता है; समाज जीवित है कामवासना द्वारा जाति जीती है कामवासना द्वारा तुम यहां पर हो क्योंकि तुम्हारे माता-पिता ने परस्पर प्रेम किया, कामवासना में सरके यदि तुम सरकते हो कामवासना में तो तुम्हारे बच्चे यहां होंगे, तुम चले जाओगे। यदि तुम नहीं सरकते कामवासना में तब कहीं कोई भविष्य न रहा। तुम जाति के यहां बने रहने में कोई मदद नहीं देते। यदि हर कोई ब्रह्मचारी बन जाता है, तब समाज तिरोहित हो जाएगा। भोजन द्वारा व्यक्ति का शरीर बना रहता है; कामवासना द्वारा जाति का शरीर बना रहता है। लेकिन पहले है व्यक्ति, क्योंकि यदि व्यक्ति ही न हो, तो जाति कैसे बनी-बची रह सकती है? अतः व्यक्ति प्राथमिक होता है, जाति है द्वितीय। जब तुम भरे हु होते हो ऊर्जा से और शरीर ठीक अनुभव कर रहा होता है, तब तुरंत ऊर्जा अब तुम्हारे पास पर्याप्त है और तुम उसे बांट सकते हो जाति के है तो कामवासना तिरोहित हो जाती है। भेजी जाती है काम-केंद्र की ओर । साथ। जब ऊर्जा प्रवाह क्षीण हो जरा दस दिन का उपवास रखना, और दसवें दिन तक तुम्हें लगेगा कि तुम्हें स्त्री में कोई रस ही नहीं रहा है। यदि तुम पंद्रह दिन का और ज्यादा लंबा उपवास रखते हो, तो पंद्रहवें दिन, चाहे कोई बहुत सुंदर प्लेब्बाय और प्लेगर्ल पत्रिकाएं भी वहां पड़ी हों, तुम उन्हें खोल न पाओगे। वे पड़ी रहेंगी वहीं और धूल जम जाएगी उन पर तुम आकर्षित नहीं होओगे। इक्कीसवें दिन, यदि तुमने उपवास जारी रखा, तो चाहे नग्न स्त्री भी वहां नृत्य कर रही हो, तुम बुद्ध की भांति ही बैठे रहोगे। ऐसा नहीं है तुम बुद्ध की भांति हो गए। एक दिन को एकदम ठीक भोजन मिलते ही तुम रस लेने लगोगे प्लेब्बाय में और प्लेगर्ल में। तीसरे दिन ऊर्जा फिर से बह रही होती है; तुम स्त्री में रस लेने लगोगे । , वस्तुत: मनस्विद इसे एक कसौटी बना चुके हैं कि यदि कोई पुरुष स्त्रियों में रुचि नहीं लेता, तो कुछ गलत बात होती है। यदि स्त्री पुरुषों में रुचि नहीं लेती, तो कोई गलत बात होती है। ऊर्जा प्रवाह क्षीण होता है और सौ अवस्थाओं में से, निन्यानबे अवस्थाओं में यह बात सच होती है; वे ठीक कहते हैं। केवल सॉवी अवस्था में वे सही नहीं होंगे क्योंकि वह होगा बुद्ध बुद्ध के साथ ऐसा नहीं है कि ऊर्जा क्षीण प्रवाहित हो रही होती है। ऊर्जा उच्चतम होती है, अपने शिखर पर अपनी सबसे बड़ी विशालता में होती है। लेकिन अब वे एक अलग ही व्यक्ति होते हैं, एक अलग दिशा में बढ़ते हुए जहां दूसरे में उनका रस नहीं, क्योंकि वे पूर्ण परितृप्त हो गए हैं अपने साथ दूसरे की ओर कोई गति नहीं है, और ऐसा नहीं है कि ऊर्जा का कुछ अभाव है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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