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________________ कोई पुरुष या कोई स्त्री जो बहुत गहरे रूप से बद्धमूल हो भय में, उसे हमेशा प्रेम में पड़ने से डर लगता है। तब हृदय के द्वार खुल जाएंगे और दूसरा तुम में प्रवेश कर जाएगा, और दूसरा तो है शत्रु । सार्त्र कहता है, 'दूसरा है नरक । 1 प्रेमियों ने एक दूसरी वास्तविकता जानी है, दूसरा है स्वर्ग, पूरा स्वर्ग । सार्त्र जरूर गहरे भय में पीड़ा में, चिंता में जी रहा है। और सार्त्र बहुत, बहुत प्रभावकारी हो गया है पश्चिम में। वस्तुतः उससे बचना चाहिए रोग की भांति, एक खतरनाक रोग की भांति। लेकिन वह आकर्षित करता है क्योंकि जो कुछ भी वह कह रहा है, बहुत लोग वही कुछ तो अनुभव करते हैं अपने जीवन में यही है उसका आकर्षण । निराशा, उदासी, पीड़ा, भय : ये ही हैं सार्त्र के मूल विषय, अस्तित्ववाद के संपूर्ण आंदोलन के विषय । और लोग अनुभव करते कि ये उनकी समस्याएं हैं। इसीलिए जब मैं बात करता हूं प्रेम की निस्संदेह तुम अनुभव करते कि वह तुम्हारी समस्या है ही नहीं तुम्हारी समस्या तो भय की है। लेकिन मैं कहना चाहूंगा तुमसे कि प्रेम है तुम्हारी समस्या, भय नहीं। यह ऐसा है : जैसे कि घर में अंधेरा हो और मैं बात करूं प्रकाश की। तुम कहते, 'आप प्रकाश की ही बात करते जाते हैं। बेहतर होता यदि आप बोलते अंधकार के बारे में, क्योंकि हमारी समस्या तो अंधकार की है। घर भरा हुआ है अंधकार से प्रकाश नहीं है हमारी समस्या । ' लेकिन क्या तुम्हें बात समझ में आती है कि तुम क्या कह रहे हो? यदि अंधकार है तुम्हारी समस्या, तो अंधकार के बारे में बातें करना मदद न देगा। तुम कहते हो कि अंधकार है तुम्हारी समस्या, लेकिन सीधे तौर पर कुछ किया नहीं जा सकता है अंधकार के बोरे में। तुम उसे बाहर निकाल फेंक नहीं सकते, तुम उसे बाहर धकेल नहीं सकते, तुम उसे उतार दूर नहीं कर सकते । अंधकार एक अभाव है सीधे-सीधे उसके बारे में कुछ किया नहीं जा सकता है। यदि तुम्हें कुछ करना हो, तो तुम्हें कुछ करना होगा प्रकाश के साथ, अंधकार के साथ नहीं । ज्यादा ध्यान देना प्रकाश पर कि कैसे ढूंढो प्रकाश को कैसे निर्माण करो प्रकाश का, कैसे घर में प्रज्वलित कर लो दीया? और तब अचानक, कहीं कोई अंधकार नहीं रहता । ध्यान रहे कि समस्या प्रेम की होती है, भय की नहीं तुम देख रहे हो असद् पक्ष की ओर। तुम जन्मों-जन्मों तक देख सकते हो असद् पक्ष की तरफ और तुम उसे सुलझा न पाओगे। सदा स्मरण रखना कि अनुपस्थिति को नहीं बना लेना होता है समस्या, क्योंकि कुछ नहीं किया जा सकता है उस विषय में। केवल उपस्थिति को बनाना है समस्या, क्योंकि तभी किया जा सकता है कुछ; उसे सुलझाया जा सकता है। यदि भय अनुभव होता हो, तो समस्या प्रेम की है। ज्यादा प्रेममय हो जाओ। दूसरे की ओर कुछ कदम बढ़ाओ। क्योंकि भय हर किसी में है, केवल तुम्हीं में नहीं। तुम प्रतीक्षा करते हो कि कोई आ
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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