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________________ रखता है कि अर्थ की कोई आवश्यकता नहीं। क्या अर्थ है एक वृक्ष के विद्यमान होने में, या प्रात: हर दिन सूर्योदय होने में, या कि रात को चांद के होने में? जब एक वृक्ष फलने-फूलने लगता है तो क्या अर्थ होता है इसका? और क्या अर्थ होता है इसमें, जब प्रात: पक्षी चहचहाते हैं, जब नदी प्रवाहित होती जाती है और लहरें, वे बड़ी-बड़ी अद्भुत लहरें सागर की चट्टानों पर फिर-फिर और फिर-फिर बिछल चकनाचूर होती रहती हैं? क्या होता है अर्थ? समग्रता का कोई अर्थ नहीं है। समग्रता बहुत सुंदरता से अस्तित्व रखती है बिना अर्थ के ही। वस्तुत: यदि कहीं कोई अर्थ होता तो समग्रता इतनी सुंदर न होती। क्योंकि अर्थ के साथ ही चली आती है विचारित गणना, अर्थ के साथ ही आ पहुंचती है चालाकी, अर्थ के साथ आता है तर्क, अर्थ के साथ चला आता है भेद : यह अर्थपूर्ण है, वह अर्थहीन है, यह अधिक अर्थपूर्ण है, यह कम अर्थपूर्ण है। समग्रता अस्तित्व रखती है बिना किन्हीं भेदों के। हर चीज परम सौदर्यवान होती है किसी अर्थ के कारण नहीं, बल्कि मात्र मौजूद होने से ही। कोई प्रयोजन नहीं होता। तो मैंने कहा उस युवक से, 'यदि तुम अर्थ पूछते हो, तो तुम गलत सवाल पूछ रहे हो और यह तुम्हें गलत दिशाओं में भटकाएगा। इसी तरह पंडित-पुरोहित इतने शक्तिशाली बन गये हैं; तुमने पूछे हैं लत सवाल और उन्होंने दे दिये गलत जवाब। तुम केवल अपने होने को ध्यान से देखो। स्वयं को तृप्त करने के लिए क्या तुम्हें एक स्त्री की जरूरत है? क्या तुम्हारे समस्त प्राण ललकते हैं प्रेम के लिए? क्योंकि प्रेम एक भूख है, एक प्यास है। जब तुम किसी सुंदर स्त्री को देखते हो पास से गुजरते हुए तब क्या तुम में अकस्मात् कुछ घटता है? –कोई तरंग, कोई अदृश्य बात, कोई परिवर्तन? या कुछ | घटता है? क्या तुम उसी ढंग से चलते -फिरते रहते हो जैसे कि तुम तब चलते रहते यदि यह स्त्री पास से न गुजरी होती? यदि तुम सड़क पर चलते हो और कोई सुंदर स्त्री गुजर जाती है, और तुम उसी तरह से चलते जाते हो जैसे कि तुम उस स्त्री के आने से पहले चल रहे थे, कुछ घटित नहीं हुआ होता, कोई तरंग नहीं उठी तुम्हारे प्राणों में, एक छोटी-सी लहर तक भी नहीं, तब कोई आवश्यकता नहीं है विवाह की। लेकिन अर्थ के विषय में कुछ मत पूछना। यदि कुछ घटता है, यदि तुम थोड़ा ज्यादा तेज चलने लगते हो या तुम कोई धुन गुनगुनाने लगते हो या तुम उस सुंदर स्त्री की ओर देखने लगते हो या तुम उससे बचना शुरू कर देते हो; यदि कुछ घटता है उस ढंग से या इस ढंग से-मुझे इससे कुछ लेना-देना नहीं है कि किस ढंग से घटता है; तुम उसी दिशा में चलने लगते हो जिस ओर स्त्री जा रही होती है या कि तुम विपरीत दिशा की ओर भागने लगते हो, प्रासंगिकता इसकी नहीं है यदि कुछ घटता है तो तुम्हारे पास आवश्यकता है और पूरी करनी होती है वह आवश्यकता। क्योंकि आवश्यकता विद्यमान होती है पूरी होने के लिए ही। कोई दिन आ सकता है जब तुम सड़क पर किसी स्त्री के पास से गुजरोगे और इससे कुछ अंतर नहीं पड़ेगा। वह अच्छा है, लेकिन यह भी अच्छा है। हर चीज पवित्र और पावन है। एक समय होता है प्रेम में पड़ने का और एक समय होता है इससे पार हो जाने का। एक समय होता है संबंध में जुड़ने का, संबंध दवारा
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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