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________________ दो प्रकार की समाधि होती है. एक को पतंजलि कहते हैं, सवितर्क दूसरी को वे कहते 'निर्विकल्प' या 'निर्वितर्क ये होती हैं दो अवस्थाएं पहले तो कोई उपलब्ध होता है सवितर्क समाधि को; जिसमें कि तर्कसंगत मन अभी भी चल रहा होता है। यह है समाधि, लेकिन फिर भी बौद्धिक दृष्टिकोण पर आधारित होती है। तर्क अभी भी काम कर रहा है, तुम भेद बना रहे होते हो यह उच्चतम समाधि नहीं होती है, मात्र पहला कदम है। लेकिन यह भी बहुत - बहुत कठिन है, क्योंकि इसमें भी जरूरत पड़ेगी केंद्र की ओर थोड़ा बहुत जाने की। उदाहरण के लिए : परिधि है वहां, जहां कि तुम बिलकुल अभी खड़े हो, और केंद्र है वहां, जहां कि मैं बिलकुल अभी और दोनों के बीच, ठीक मध्य में, सवितर्क समाधि है। इसका मतलब हुआ कि तुम सतह पर से सरक आए हो; तो भी तुम केंद्र तक नहीं पहुंचे हो अभी तक। तुम सरक आए हो परिधि से पर अभी भी बहुत दूर है केंद्र तुम ठीक मध्य में हो। अभी तक कुछ पुराना कार्य कर रहा है, और कुछ नया आधे रास्ते तक प्रवेश कर चुका है। और चेतना की इस बीच की अवस्था की परिस्थिति क्या होगी? सवितर्क समाधि वह समाधि है जहां योगी अभी भी वह भेद करने के योग्य नहीं होता है जो सच्चे ज्ञान के ....... । क्या सत्य है, यह भेद वह अभी भी नहीं कर पाएगा, क्योंकि सत्य जाना जा सकता है केवल केंद्र द्वारा ही। उसे जानने का दूसरा कोई उपाय नहीं। वह नहीं जान सकता सच्चा ज्ञान क्या है। कोई सत्य बूंद-बूंद टपक रहा होता है भीतर, क्योंकि वह सरक आया है परिधि से ज्यादा निकट आ पहुंचा है केंद्र के। वह अभी केंद्रस्थ नहीं हुआ, तो भी ज्यादा निकट आ पहुंचा है। केंद्र की कोई चीज भीतर झर रही है—कुछ–कुछ प्रत्यक्ष बोध, केंद्र की कुछ झलकियां, लेकिन पुराना मन फिर भी है वहां, पूरी तरह नहीं चला गया। एक वहां, पुराना मन अभी भी कार्य करता जा रहा है। योगी अभी भी अयोग्य है भेद करने में कि क्या है सच्चा ज्ञान । सच्चा ज्ञान वह शान है जो घटता है जब मन किसी विकार से बिलकुल ग्रस्त नहीं होता। एक तरह से मन जब संपूर्णतया तिरोहित हो गया होता है, वह इतना पारदर्शी हो चुका है कि वह वहां है या नहीं, इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता। इस मध्य अवस्था में योगी पड़ा होता है बहुत गहन विश्वम में।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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