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________________ हंसना ही है, हमें आनंदित होना ही है, हमें उत्सव मनाना ही है। यही एक मात्र विदाई संभव है उस व्यक्ति के लिए जो जीवन भर हंसता रहा है। और यदि हम नहीं हंसते, तो वह हंसेगा हम पर और वह सोचेगा, अरे नासमझों! तो तुम फिर जा फंसे जाल में? हम नहीं समझते कि वह मर गया है। हंसी कैसे मर सकती है? जीवन कैसे मर सकता है?' हंसना शाश्वत चीज है, जीवन शाश्वत है, उत्सव चलता ही रहता है। अभिनय करने वाले बदल जाते हैं, लेकिन नाटक जारी रहता है। लहरें परिवर्तित होती हैं, लेकिन सागर बना रहता है। तुम हंसते, तुम बदलते और कोई दूसरा हंसने लगता, लेकिन हंसना तो जारी रहता है। तुम उत्सव मनाते हो, कोई और उत्सव मनाता है, लेकिन उत्सव तो चलता ही रहता है। अस्तित्व सतत प्रवाह है, वह सब कुछ समाए चलता है, उसमें एक पल का अंतराल नहीं होता। लेकिन गांव के लोग नहीं समझ सकते थे और वे इस हंसी में उस दिन तो शामिल नहीं हो सकते थे। फिर देह का अग्नि-संस्कार करना था, और गांव के लोग कहने लगे, 'हम तो इसे स्थान कराएंगे जैसे कि धार्मिक कर्मकांड नियत होते हैं। लेकिन वे दोनों मित्र बोले, 'नहीं, हमारे मित्र ने कहा है कि कोई धार्मिक अनुष्ठान मत करना और मेरे कपड़े मत बदलना और मुझे स्नान मत कराना। जैसा मैं हं तुम मुझे वैसा ही रख देना चिता की आग पर। इसलिए हमें तो उसके निर्देशों को मानना ही पड़ेगा।' और तब, अचानक ही, एक बड़ी घटना घटी। जब शरीर को आग दी जाने लगी, तो वह बूढ़ा आदमी आखिरी चाल चल गया। उसने बहुत-से पटाखे छिपा रखे थे कपड़ों के नीचे, और अचानक दीपावली हो गयी! तब तो सारा गांव हंसने लगा। ये दोनों पागल मित्र नाच ही रहे थे, फिर तो सारा गांव ही नाचने लगा। यह कोई मृत्यु न थी, यह नया जीवन था। कोई मृत्यु मृत्यु नहीं होती, क्योंकि प्रत्येक मृत्यु खोल देती है एक नया द्वार-वह एक प्रारंभ होती है। जीवन का कोई अंत नहीं, सदा एक नया प्रारंभ होता है, एक पुनर्जीवन। यदि तुम अपनी उदासी को बदल देते हो उत्सव में, तो तुम अपनी मृत्यु को नए जीवन में बदलने में भी सक्षम हो जाओगे। तो सीख लो यह कला जब कि समय अभी बाकी है। जब तक निचले तल की चीजों को उच्चतर चीजों में बदलना न सीख लो उसके पहले मत आने दो मृत्यु को। क्योंकि अगर तुम बदल सकते हो उदासी को, तो तुम बदल सकते हो मृत्यु को। यदि तुम बेशर्त उत्सवमय हो सकते हो, तो जब मृत्यु आये तब तुम हंस पाओगे, तुम उत्सव मना पाओगे, तम हो जाओगे प्रसन्न और तब तुम मनाए जा सकते हो उत्सव, मृत्यु तुम्हें नहीं मार सकती। बल्कि इसके विपरीत तुमने मार दिया होता है मृत्यु को। लेकिन ऐसा करना प्रारंभ करो, इसे आजमाओ। गंवाने को कुछ है नहीं। लेकिन लोग इतने मूढ़ हैं कि जब गंवाने को कुछ न हो, तो भी वे आजमाएंगे नहीं। गंवाने को है क्या?
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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