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________________ उसके साथ, तुम नदी को धकेलने की कोशिश मत करना। नदी तो बह रही है - तुम उसके साथ एक हो जाओ और नदी ले जाती है तुम्हें सागर तक यही होता है एक संन्यासी का जीवन सहज होने देने का जीवन करने का नहीं। तब तुम्हारी अंतससत्ता पहुंच जाती है, धीरे - धीरे, बादलों से ऊपर, बादलों और अंतर्विरोधों के पार । अचानक तुम मुक्त होते हो। जीवन की अव्यवस्था में, तुम पा लेते हो एक नयी व्यवस्था। लेकिन व्यवस्था की गुणवत्ता अब संपूर्णतया अलग होती है। यह कोई तुम्हारे द्वारा आरोपित चीज नहीं होती, यह स्वयं जीवन के साथ ही आत्मीयता से गुंथी होती है। वृक्षों में भी एक व्यवस्था होती है, नदियों में भी, पर्वतों में भी, लेकिन ये व्यवस्थाएं वे नहीं जो नैतिकतावादियों द्वारा, प्यूरिटन्स द्वारा, पुरोहितों द्वारा आरोपित होती हैं। वे नहीं जातीं किसी के पास मार्ग निर्देशन के लिए। व्यवस्था अंतर्निहित होती है; वह स्वयं जीवन में ही होती है। एक बार अहंकार वहां नहीं रहता योजनाएं बनाने को यहां वहां खींचने धकेलने को कि यह करो और वह करो...। जब तुम पूरी तरह अहंकार से मुक्त होते हो, तो एक अनुशासन तुममें आ जाता है- एक आतंरिक अनुशासन। यह अकारण होता है, अहेतुक होता है। यह किसी चीज की तलाश नहीं है, यह तो बस घटता है जैसे कि तुम सांस लेते हो, जैसे कि जब तुम्हें भूख अनुभव होती है और तुम कुछ खा लेते हो, जैसे कि जब तुम्हें नींद आने लगती है और तुम बिस्तर पर चले जाते हो यह आंतरिक सुव्यवस्था होती है, एक अंतर्निहित सुव्यवस्था। वह आ बनेगी जब तुम्हारा तालमेल बैठ जाता है असुरक्षा के साथ, जब तुम्हारी सुसंगति बन जाती है अपने भीतर के अजनबी के साथ, जब तुम अपने भीतर की अज्ञात सत्ता के साथ लयबद्ध हो जाते हो। —- झेन में उनके पास एक कथन है, सुंदरतम कथनों में से एक जब कोई व्यक्ति रहता है संसार में, तो पर्वत पर्वत होते हैं, नदिया नदियां होती हैं। जब कोई व्यक्ति ध्यान में उतरता है, तब पर्वत फिर पर्वत नहीं रहते, नदियां नदियां नहीं रहती। हर चीज एक भ्रम और एक अव्यवस्था होती है। लेकिन जब कोई व्यक्ति उपलब्ध कर लेता है सतोरी को, समाधि को, फिर नदियां नदिया होती हैं और पर्वत होते हैं पर्वत । तीन अवस्थाएं होती हैं? पहली में तुम अहंकार के प्रति सुनिश्चित होते हो, तीसरी में तुम निरहंकार अवस्था में परिपूर्ण निश्चित होते हो। और इन दोनों के बीच अराजकता की अवस्था है, जब अहंकार की निश्चितता तिरोहित हो गयी है और जीवन की सुनिश्चितता अभी आयी नहीं यह एक बहुत ज्यादा संभावनापूर्ण घड़ी होती है, बहुत गर्भित घड़ी है १ यदि तुम डर जाते हो और वापस मुड़ जाते हो, तो तुम चूक जाओगे संभावना को । आगे है सच्ची निश्चितता । वह सच्ची निश्चितता अनिश्चितता के विपरीत नहीं है। आगे है सच्ची सुरक्षा, , लेकिन वह सुरक्षा असुरक्षा के विपरीत नहीं है। वह सुरक्षा इतनी विशाल होती है कि वह
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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