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________________ मेरी पत्नी अभी भी संतुष्ट नहीं है। यदि एक दिन मैं चाहूं विश्राम करना और सुबह जल्दी न उठं तो वह आती है और कहती है कि बात क्या है? क्या आप आफिस नहीं जा रहे हैं!' मैंने कहा इस आदमी से, 'फिर से जाल में मत फंसो। जिंदगी भर तो तुमने आराम करना चाहा, और अभी भी हालत वही है? आलसी आदमी आराम करना चाहता है, लेकिन जब वह रहता है पत्नी के साथ, तो एक वृत्ति आ जमती है मन में। अब वह स्त्री उसकी सत्ता का अनिवार्य हिस्सा हो जाती है। वह जी नहीं सकता उसके साथ क्योंकि वह रोज झगड़ा कर सकती है, लेकिन वह बात भी आदत का एक हिस्सा बन जाती है। यदि कोई ऐसा नहीं होता झगड़ने के लिए जब कि वह घर आता है, तो वह अनुभव नहीं कसेग घरेलू ढंग का सुख, चैन। मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन गया एक रेस्तरा में। सेविका ने कहा, 'क्या चाहिए आपको? मैं तैयार हूं पूरा करने को।' उस दिन का वह पहला ग्राहक था, और वह बात भारत की थी। पहले ग्राहक का सम्मान करना होता है और उसका स्वागत करना पड़ता है अतिथि की भांति, क्योंकि उससे शुरुआत होती है दिन की। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, 'मेरे साथ घरेलू ढंग से व्यवहार करो। ले आओ चीजें।' सेविका वे चीजें ले आयी जिनका आर्डर उसने दिया था : कॉफी और भी कई चीजें। फिर वह पूछने लगी, 'कुछ और?' मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, 'अब बैठो मेरे सामने और जरा लड़ों-झगड़ो। मुझे घर की याद नहीं आ रही है!' यदि पत्नी हर रोज लड़ती भी हो, तो वह आदत बन जाती है। तुम उसे खोने की बात बरदाश्त नहीं कर सकते, तुम उसका अभाव महसूस करते हो। मैंने कहा उस आदमी से, 'अब फिर चिंता मत लो। यह तो केवल वृत्ति है मन की, एक आदत। तुम सुस्त आदमी हो।' आलसी आदमी के लिए ब्रह्मचर्य सब से उत्तम है। उन्हें ब्रह्मचारी ही रहना चाहिए। वे कर सकते है आराम, कर सकते हैं 'विश्राम, और अपने को ले कर जो कुछ करना चाहते हैं कर सकते हैं। वे अपने मन की कर सकते हैं और परेशान करने को कोई मौजूद नहीं होता। उसने सुनी मेरी बात। ऐसा कठिन था, लेकिन उसने मेरी बात सुनी। दो वर्ष के बाद, वह निवृत्त हो गया नौकरी से, तो मैंने कहा, ' अब तुम्हें पूरी तरह चैन है, अब तुम आराम करो। अपने जीवन भर तुम इसी की तो सोचते रहे हो।' वह कहने लगा, 'वह तो ठीक है। लेकिन अब चालीस वर्ष काम करने के बाद यह बात तो एक आदत बन गयी है, और मैं बिना कुछ किए नहीं रह सकता।'
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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