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________________ पड़ता है कि हिंदुओं की यह बात बड़ी अंतर्दृष्टि की है, क्योंकि यही तीन चीजें हैं जिन्हें भौतिक वैज्ञानिक कहते हैं पदार्थ की आणविक ऊर्जा के घटक चाहे न्यूट्रान, लेकिन ये तो केवल नाम के भेद हैं। हिंदू इसे कहते हैं वे इसे कहते हो इलेक्ट्रान, प्रोट्रान और – सत्व, रजस और तमस । - वैज्ञानिक राजी हैं कि पदार्थ के बने रहने के के गुण चाहिए। हिंदू कहते हैं कि ये तीन व्यक्तित्व के लिए, बल्कि संपूर्ण अस्तित्व के लिए या किसी भी चीज के बने रहने के लिए तीन प्रकार गुण चाहिए व्यक्तित्व के बने रहने के लिए; न केवल बने रहने के लिए। पतंजलि कहते हैं कि ये तीनों एक दूसरे के विपरीत होते हैं और ये उपद्रव की जड़ हैं और तीनों ही मौजूद होते हैं तुममें आलस्य का अस्तित्व होता है, वरना तो तुम सो ही न पाओ। जो लोग अनिद्रा से पीड़ित हैं वे पीड़ित हैं क्योंकि तमस गुण उनमें पर्याप्त मात्रा में नहीं होता। इसलिए तो ट्रैक्यिलाइजर मदद करते हैं, क्योंकि ट्रैक्यिलाइजर तमस निर्मित करने वाला रसायन होता है। वह निर्मित कर देता है तुममें तमस, आलस्य यदि लोग बहुत ज्यादा राजसी होते हैं, ओज और ऊर्जा से हु भरे होते हैं, तो वे नहीं सो सकते। इसलिए पश्चिम में अनिद्रा अब एक समस्या बन चुकी है। पश्चिम में रजस ऊर्जा बहुत ज्यादा है। इसीलिए पश्चिम ने राज्य किया सारे संसार पर इंग्लैंड जैसा छोटा देश राज्य करता रहा आधे संसार पर। वे जरूर बहुत राजसी रहे। साठ करोड़ लोगों का भारत जैसा देश अब दरिद्र बना हुआ है; इतने सारे लोग हैं जो कुछ नहीं कर रहे हैं। वे और – और ज्यादा बोझ बन जाते हैं। वे कोई मूल्यवान नहीं, वे देश के लिए बोझ हैं। बहुत ज्यादा है तमस, आलस्य, अकर्मण्यता। और फिर है सत्व जो कि विपरीत है दोनों के। ये तीन तत्व तुम्हें संघटित करते हैं। और वे सभी तीन विभिन्न आयामों में सरक रहे हैं। उनकी जरूरत है, उन सभी की जरूरत है उनकी विपरीतता में ही क्योंकि उनके तनाव द्वारा तुम जीते हो। यदि उनका तनाव खो जाए, यदि वे हो जाएं सुसंगत, तो मृत्यु आ जाए। हिंदू कहते हैं, जब ये तीन तत्व तनाव में होते हैं, तो अस्तित्व का अस्तित्व रहता है, सृजन होता है; जब ये तीन तत्व एक स्वर में होते हैं, अस्तित्व विघटित हो जाता है, प्रलय आ जाती, सृष्टि का नाश हो जाता है। तुम्हारी मृत्यु और कुछ नहीं सिवाय इन तीनों तत्वों के तुम्हारे शरीर में समस्वरता में आने के - तब तुम मर जाते हो। यदि वह तनाव ही न रहे, तो कैसे जी सकते हो तुम? यही है अड़चन बिना इन तीन तनावों के तुम जी नहीं सकते तुम मर जाओगे! और तुम जी नहीं सकते उनके साथ क्योंकि वे विपरीत हैं और वे तुम्हें खींचते हैं विभिन्न दिशाओं में तुमने बहुत बार अनुभव किया होगा तुम अलग- अलग दिशाओं में खींचे जा रहे हो। तुम्हारा एक हिस्सा कहता है 'महत्वाकांक्षी बनो'; दूसरा हिस्सा कहता है, महत्वाकांक्षा चिंता बना देगी। इसके विपरीत, ध्यान करो. प्रार्थना करो, संन्यासी हो जाओ।' एक हिस्सा कहता है कि पाप सुंदर होता है, पाप का आकर्षण है उसमें एक चुंबकीय शक्ति होती है मौज मनाओ, क्योंकि देर अबेर मृत्यु तो सब ले लेगी। मिट्टी मिट्टी : - में मिल जाती है, और कुछ बचता नहीं। मौज कर लो इससे पहले कि मृत्यु सब छीन ले । फ्लो मत ।'
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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