SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे लोग जो कि जीवित रहना चाहते हैं उन्हें एक चीज का निर्णय लेना है : उन्हें मृत्यु को स्वीकार करने की बात का निर्णय लेना है। उन्हें न ही केवल स्वीकार करना होगा मृत्यु को, उन्हें तो उसका स्वागत करना है। हर क्षण उन्हें तैयार रहना होगा उसके लिए। यदि तुम नहीं स्वीकार करते मृत्य को, तो तुम बिलकुल शुरू से ही मुरदा बने रहोगे। वही है बचाव का एकमात्र रास्ता-तुम बने रहोगे बीज। पक्षी मर जाएगा अंडे की खोल में -बहुत-से पक्षी मर जाते हैं अंडे की खोल में। तुम हो यहां पर। यदि तुम मुझसे कोई मदद चाहते हो, तो मुझे तोड्ने दो तुम्हारा कवच, तुम्हारी सुरक्षाएं, तुम्हारे बैंक खाते, तुम्हारे जीवन बीमे, मुझे बनाने दो तुम्हें खुले हुए, असुरक्षित। सुरक्षित तो तुम रहोगे कवच में, और जल्दी ही तुम एक सड़ी हुई चीज बन जाओगे। बाहर आ जाओ उससे। कवच है तुम्हारे बचाव के लिए, तुम्हें मारने के लिए नहीं। उसका उद्देश्य यह नहीं है कि तुम्हें सदा खोल में ही रहना चाहिए। अच्छी होती है यह बात-शुरू में यह बचाव भी करती है, जब तुम बहुत सुकोमल होते हो बाहर आने की दृष्टि से। लेकिन जब तुम तैयार होते हो तब तोड़ना ही होता है खोल को। चाहे कितनी ही सुविधा में और कितने ही सुरक्षित हो तुम, खोल में एक पल भी और बिताया और तुमने खो दी संभावना, तुम खो दोगे अवसर-जीवित होने का और आकाश में उड़ने का। निस्संदेह खतरे हैं, लेकिन खतरे सुंदर हैं। बिना खतरों का संसार असंदर होगा, और बिना खतरों के जिंदगी कोई बहुत जीवंत नहीं हो सकती है। इसीलिए गहरे तल पर हर पुरुष और हर स्त्री में खतरों के बीच जीने की एक अंतःप्रेरणा होती है। वह अंतःप्रेरणा है जीवन के लिए। इसीलिए तुम पर्वतों पर चले जाते, इसीलिए तुम निकल पड़ते अज्ञात यात्रा पर, इसीलिए आदमी कोशिश करता चांद तक पहुंचने की, इसीलिए कोई कोशिश करता एवरेस्ट तक पहुंचने की, और कोई चल पड़ता समुद्री यात्रा पर किसी छोटी-सी हाथ की बनी नाव में। खतरे के लिए एक गहरी अंतःप्रेरणा होती है, वह आंतरिक प्रेरणा होती है जीवन के प्रति। मत मारना उस आंतरिक प्रेरणा को, अन्यथा तुम यहां होओगे और जीवित न होओगे। यदि तुम मुझे ठीक से समझो, तो जब मैं तुम्हें संन्यासी बनाता हूं, जब मैं संन्यास में दीक्षित करता हूं तुम्हें; तो मैं दीक्षित करता हूं असुरक्षा के, बिना खोल के जीवन में। संन्यास है खोल से बाहर होने की एक छलांग, और खोल है अहंकार। अहंकार एक सुरक्षा है, तुम्हारे चारों ओर की एक सूक्ष्म दीवार की भाति है। इसलिए अहंकार इतना ज्यादा कंपित होता है। कोई कहता है कुछ या कि कोई केवल हंस पड़ता तुम पर और वह यूं ही किसी कारण से हंस देता है और तुम्हें चोट लगती है। तुम स्वयं का बचाव शुरू कर देते हो, तुम लड़ने को तैयार हो जाते हो। जो कुछ भी खतरनाक जान पड़ता है उसके साथ लड़ने की तत्परता है अहंकार। अहंकार एक निरंतर संघर्ष है जीवन के विरुद्ध, क्योंकि जीवन खतरनाक होता है। जहां कहीं जीवन प्रयत्न करता है तुम्हारे पास पहुंचने का, अहंकार वहां एक चट्टान की भाति मौजूद रहता है तुम्हारा बचाव करने को। इस चट्टान को पार कर जाओ, अहंकार के इस कवच को तोड़ डालो, इसके बाहर आ जाओ।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy