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________________ भेद क्या होता है? कामवासना में तुम संबंधित होते हो स्वयं के साथ, दूसरे से बिलकुल ही संबंध नहीं होते। तुम तो बस उपयोग करते हो दूसरे का। इसीलिए कामवासना से जुड़े साथी निरंतर लड़ते हैं, क्योंकि एक अंत - अनुभूति वहा होती है कि दूसरा मेरा इस्तेमाल कर रहा है। कामवासनायुक्त साथी आंतरिक समस्वरता के बिंदु तक नहीं आ सकते। उन्हें फिर-फिर लड़ना होगा, क्योंकि स्त्री सोचती है कि पुरुष उसका उपयोग कर रहा है - और ठीक सोचती है वह । इसमें कुछ गलत नहीं। और पुरुष सोचता है कि स्त्री उसका उपयोग कर रही है। और जब कभी कोई तुम्हारा उपयोग करता है साधन की भांति, तो तुम्हें चोट लगती है। यह बात शोषण जैसी मालूम पड़ती है। पुरुष संबंध रखता है उसकी अपनी कामवासना से, स्त्री संबंध रखती है उसकी अपनी कामवासना से दोनों में से कोई गतिमान नहीं हो रहा होता दूसरे की तरफा गति वहा - होती ही नहीं। वे दो स्वार्थी व्यक्ति होते हैं? स्वकेंद्रित, एक-दूसरे का शोषण करनेवाले। यदि वे बात करते हैं प्रेम के बारे में और उसके गीत गाते हैं और काव्यात्मक होते हैं, तो वह बात होती है मात्र एक विमोह, विश्वास पैदा करने की कोशिश, एक प्रलोभन - लेकिन उन्हें दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं होता है। एक बार जब पुरुष ने उपयोग कर लिया होता है स्त्री का, वह करवट बदल लेता है और सो जाता है; खत्म हो जाती है बात- चीज इस्तेमाल कर ली गई और फेंक दी गई। अमरीका में उन्होंने बनायी हैं प्लास्टिक की स्त्रियां और प्लास्टिक के पुरुष। वे खूब संपूर्णता से काम करते हैं। प्लास्टिक की स्त्री, यदि तुम छुओ उसके स्तनों को, तो स्तन जीवंत हो जाते हैं, वे उत्तप्त हो जाते हैं। तुम प्रेम कर सकते हो प्लास्टिक की स्त्री से और वह वैसा ही तृप्तिदायी होता है, जैसा किसी स्त्री का कुछ ज्यादा ही, क्योंकि कोई लड़ाई नहीं, कोई संघर्ष नहीं। समाप्ति पर तुम फेंक सकते हो स्त्री को और सो सकते हो। यही कुछ है जो लोग कर रहे हैं। चाहे स्त्री प्लास्टिक की होती है वास्तविक होती है इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता है और स्त्री उपयोग किए चली जाती है पुरुष का ! जब कभी तुम दूसरे का उपयोग करते हो साधन की भांति तो वह बात अनैतिक होती है। दूसरा स्वयं में साध्य होता है। लेकिन दूसरा स्वयं में साध्य बनता है तुम्हारे अस्तित्व की दूसरी अवस्था में ही - जब तुम प्रेम करते हो। तब तुम प्रेम करते दूसरे के लिए। तब तुम उपयोग नहीं कर रहे होते। तब दूसरा महत्वपूर्ण होता है, अर्थवान स्त्री हो कि पुरुष, दूसरा स्वयं में साध्य होता है। तुम अनुगृहीत होते हो। प्रेम में कोई शोषण संभव नहीं होता है, तुम मदद करते हो दूसरे की। वह कोई सौदा नहीं होता है। तुम आनंद मना रहे होते हो मदद देने में, तुम बांटने से आनंदित होते हो और तुम अनुगृहीत होते हो कि दूसरा तुम्हें बांटने का अवसर देता है। प्रेम सूक्ष्म होता है। कामवासना वाला स्थूल क्षेत्र छूट जाता है। दूसरा साध्य बन जाता है। लेकिन फिर भी अभी आवश्यकता मौजूद होती है, एक सूक्ष्म आवश्यकता। क्योंकि जब तुम प्रेम करते हो किसी व्यक्ति को तो एक सूक्ष्म अपेक्षा, चाहे अचेतन तौर पर हो, छिपी रहती है कहीं न कहीं कि दूसरा भी तुम्हें प्रेम करे। यह बात छाया की भांति पीछे चलती है कि दूसरा भी तुम्हें प्रेम करे। अभी भी
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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