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________________ विचारक हो सकता है-वह है, लेकिन उसने बात को अनुभव नहीं किया, उसने जीया नहीं है उसे। यदि तुम जीते हो निराशा को, तो तुम एक ऐसे स्थल तक पहुंचोगे ही जहां कुछ करना पड़ता है, आमूल रूप से ही कुछ करना पड़ता है। रूपांतरण अत्यंत जरूरी बात बन जाता है, तुम्हारी एकमात्र दिलचस्पी बन जाता है। तुमने यह भी पूछा है, 'क्या चूक रहा है?' वही दृष्टिकोण, आध्यात्मिक दृष्टि का अभाव है पश्चिम में। अन्यथा बहुत सारे बुद्ध उत्पन्न हो सकते थे। समय तो तैयार है –निराशा, अर्थहीनता अनुभव की गयी है, वह फिजी में घुली है। समाज ने उपलब्ध किया है समृद्धि को और पाया है उसे अभावयुक्त। धन होता, शक्ति होती और गहरे तल पर मनुष्य समग्र रूप से असमर्थ अनुभव करता है। स्थिति पक गयी है, लेकिन दृष्टि का अभाव रहा है। पश्चिम में जाओ और संदेश दो। खबर पहुंचा दो आध्यात्मिक दृष्टिकोण की, ताकि जो इस जीवन में अपनी यात्राओं के अंत तक पहुंच गये हैं उन्हें अनुभव नहीं होना चाहिए कि यही है अंत-स्व नया द्वार खुल जाता है। जीवन अनंत है। बहुत बार तुम अनुभव करते कि हर चीज समाप्त हो गयी और अचानक कोई चीज फिर शुरू हो जाती है। आध्यात्मिकता की व्यापक विश्वदृष्टि का अभाव है। एक बार वह दृष्टि आ बनती है, तो बहुत से बढ़ने लगेंगे उस पर। तकलीफ यह है कि बहुत से तथाकथित पूरब के शिक्षक पश्चिम में जा रहे हैं, और वे तुमसे ज्यादा भौतिकवादी हैं। वे केवल धन के कारण ही जाते हैं वहां। वे तुम्हें आध्यात्मिकता की विश्व –दृष्टि नहीं दे सकते। वे बेचने का धंधा करते हैं। उन्होंने खोज लिया है बाजार, क्योंकि समय परिपक्व हो चुका है। लोग किसी चीज के लिए ललक रहे हैं, न जानते हुए कि किसके लिए। इस तथाकथित जीवन से लोग ऊब चुके हैं; हताश हैं, किसी अज्ञात, अभी तक न जीयी गयी चीज में छलांग लगाने को तैयार हैं। बाजार तैयार है लोगों का शोषण करने को, और पूरब के बहुत व्यापारी मौजूद हैं। वे महर्षि कहला सकते हैं, उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता, बहुत से व्यापारी, विक्रेता जा रहे हैं पश्चिम की ओर। वे वहां जाते हैं बस धन के लिए। सच्चे सदगुरु के साथ तो ऐसा है कि तुम्हें आना होता है उस तक, तुम्हें करने पड़ते हैं प्रयास। एक सच्चा सद्गुरु नहीं जा सकता है पश्चिम, क्योंकि जाने से सारी बात ही खो जाएगी, पश्चिम को ही आना है उसके पास। और पश्चिमी लोगों के लिए ज्यादा सरल होगा आंतरिक अनुशासन को, जागरण को सीखने के लिए पूरब तक आना, और फिर पश्चिम में चले जाना और नयी हवा को फैला देना। पश्चिमी लोगों के लिए ज्यादा सरल होगा पूरब में सीखना, यहां आध्यात्मिक गुरु के सन्निधिपूर्ण वातावरण में होना और फिर वापस ले जाना संदेश कों-क्योंकि तुम भौतिकवादी नहीं होओगे यदि
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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