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________________ जब तुम सारा दिन विश्राम करते हो तो तुम कैसे सो सकते हो रात में? आवश्यकता निर्मित नहीं होती। एक व्यक्ति सारा दिन कार्य करता है, जीता है, और रात होने तक वह तैयार हो जाता है विस्मृति में, अंधकार में उतरने को। ऐसा ही घटता है यदि तुमने एक सच्चा जीवन जीया होता है। यदि तुमने उसे सचमुच ही जीया होता है, तो मृत्यु विश्राम ही है। शाम आती, रात उतर आती, और तुम तैयार होते, तुम लेट जाते और तुम प्रतीक्षा करते। जब तुम ठीक प्रकार से जीते हो तो तुम और अधिक जीवन की मांग नहीं करते, क्योंकि अधिकता पहले से ही है; जितना तुम मांग सकते हो, उससे ज्यादा पहले से ही मौजूद है; जितने की तुम कल्पना कर सको, उससे ज्यादा तुम्हें दिया ही जा चुका है। यदि तुम प्रत्येक क्षण को उसकी संपूर्ण प्रगाढ़ता तक जीते हो, तो तुम सदा ही तैयार होते हो मरने के लिए। यदि बिलकुल अभी मृत्यु आ जाती है मेरे पास तो मैं तैयार हूं, क्योंकि कोई चीज अधूरी नहीं है। भविष्य के लिए मैंने कुछ भी स्थगित नहीं किया है। मैंने सुबह स्नान किया और उसका पूरा आनंद लिया। भविष्य की खातिर मैंने किसी चीज को स्थगित नहीं किया, इसलिए यदि मौत आ जाती है तो कहीं कोई समस्या नहीं। मृत्यु आ सकती है और बिलकुल अभी ले जा सकती है मुझे। भविष्य की एक हल्की-सी धारणा तक भी न होगी क्योंकि कुछ भी अधूरा नहीं है। और तुम्हारे लिए?-हर चीज अधूरी है। सुबह का स्नान तक तुम ठीक से नहीं कर सके, क्योंकि तुम्हें सुनने आना था मुझे; तुम उसे चूक गए। तुम बढ़ते हो भविष्य के अनुसार और फिर तुम चूकते चले जाते हो। यदि यह चूकने की बात एक आदत बन जाती है, और वह बन जाती है, तो तुम मेरे प्रवचन को भी चूक जाओगे। क्योंकि तुम वही आदमी हो जो चूक गया सुबह का स्नान, जो चूक गया सुबह की चाय, जिसने किसी तरह उसे समाप्त तो किया लेकिन अधूरा बना रहा। वह बात तुम्हारे सिर के चारों ओर मंडराती रहती है। वह सब जिसे कि तुमने अधूरा छोड़ दिया अभी भी तुम्हारे चारों ओर मक्खी-सा भिनभिना रहा है। अब इसकी आदत हो जाती है। तुम सुनोगे मुझे लेकिन तैयार तो तुम हो रहे होते आफिस जाने के लिए, या दुकान पर जाने के लिए, या कि बाजार जाने के लिए; तुम सरक ही चुके' हो। तुम केवल शारीरिक रूप से यहां बैठे हुए होते हो। तुम्हारा मन भविष्य में सरक चुका होता है। तुम कहीं न हो पाओगे। जहां कहीं भी तुम होते हो, तुम कहीं किसी और जगह सरक ही रहे होते हो। यह अधूरा जीवन निर्मित कर देता है जीवन के प्रति लोभ। तुम्हें बहुत सारी चीजों को पूरा करना होता है। कैसे तुम बिलकुल इसी क्षण मरना सह सकते हो? मैं इसे सह सकता हूं मैं आनंदित हो सकता हूं - हर चीज पूरी है। इसे जरा खयाल में ले लेना, पतंजलि, बुद्ध, जीसस-कोई भी जीवन के विरोध में नहीं हैं। वे जीवन के हक में हैं, पूरी तरह जीवन के हक में, लेकिन वे जीवन के लोभ के विरुद्ध हैं क्योंकि जीवन का लोभ उस आदमी का लक्षण है जो कि जीवन चूक रहा है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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