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________________ जाते हो। वह तुम्हारे भीतर की ही कोई चीज है। तुम उसे बाहर नहीं छोड़ सकते, तुम उससे बच नहीं सकते, मृत्यु-भय तुम्ही हो। मृत्यु का यह भय आता कहां से है? क्या तुमने पहले कभी जाना है मृत्यु को? यदि तुमने पहले नहीं जाना है मृत्यु को, तो तुम उससे भयभीत क्यों हो, किसी उस चीज से भयभीत हो जिसे तुम जानते नहीं। यदि तुम पूछो मनोविश्लेषकों से तो वे कहेंगे, 'भय प्रासंगिक है, यदि तुम जानते हो कि मृत्यु क्या है। यदि तुम पहले मर चुके हो, तो भय प्रासंगिक जान पड़ता है। ' लेकिन तुम तो जानते नहीं मृत्यु को। तुम नहीं जानते कि वह दर्दनाक होगी या वह आनंदपूर्ण होगी। तो फिर भयभीत क्यों हो तुम? नहीं, मृत्यु- भय वास्तव में मृत्यु का भय नहीं है, क्योंकि कैसे तुम किसी उस चीज से भयभीत हो सकते हो जो कि अज्ञात है, जो कि बिलकुल ही ज्ञात नहीं? कैसे तुम किसी उस चीज से भयभीत हो सकते हो जो कि तुम्हारे लिए बिलकुल अज्ञात है? मृत्यु- भय वास्तव में मृत्यु का भय नहीं है। मृत्यु-भय वास्तव में जीवन से चिपकना ही है। जीवन मौजूद है और तुम खूब जानते हो कि तुम उसे जी नहीं रहे हो, वह तुम्हारे बाहर-बाहर चलता चला जा रहा है। नदी तुम्हारे पास से गुजरती जा रही है, तुम किनारे पर खड़े हुए हो, और वह निरंतर तुम्हारे हाथों से निकली जा रही है। मृत्यु का भय, मौलिक रूप से यह भय है कि तुममें जीने की सामर्थ्य नहीं और जीवन बीता जा रहा है। जल्दी ही, कोई समय बचा न रहेगा, और तुम प्रतीक्षा करते रहे हो और तुम सदा तैयारी करते रहे हो। तुम तैयारियों से घिरे रहे हो। मैंने सुना है एक जर्मन विदवान के बारे में जिसने दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरियों में से एक का संग्रह किया, सारे देशों से, सारी भाषाओं से। वह कभी एक किताब तक न पढ़ पाया, क्योंकि वह सदा संचय ही करता रहा चीन चला जाता, मानव त्वचा पर लिखी कोई असाधारण पुस्तक पाने के लिए; फिर दौड़ता बर्मा की ओर, फिर आ जाता भारत में, फिर लंका, फिर अफगानिस्तान की और जिदगी भर यही कुछ। जब वह सत्तर वर्ष का हुआ, उसने पुस्तकों का, विरल पुस्तकों का एक बड़ा संग्रह संचित कर लिया था। वह सदा स्थगित करता रहा यह सोच कर कि वह उन्हें पढ़ लेगा जब लाइब्रेरी पूरी हो जाएगी। और मत्य आ पहंची। जब वह मर रहा था, तो आंस बहने लगे उसकी आंखों से। उसने पछा एक मित्र से, 'अब क्या करूं? कोई समय बचा नहीं। लाइब्रेरी तैयार है, लेकिन मेरा जीवन बीत चुका है। कुछ करो, कोई भी किताब उठाओ लाइब्रेरी से, उसमें से कुछ पढ़ो जिससे कि मैं कुछ समझ सकू। कम से कम मैं थोड़ा संतुष्ट तो हो सकू।' मित्र गया लाइब्रेरी में, एक किताब लेकर लौट आया-लेकिन विदवान तो मर गया था। ऐसा सभी के साथ घटता है, करीब-करीब सभी के साथ, तुम जिंदगी की तैयारी किए चले जाते हो। तुम सोचते हो कि पहले लाखों तैयारियां कर लेनी हैं और फिर तुम आनंद मनाओगे, और फिर तुम
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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