SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है, कोई और दूसरा तुम्हें पीड़ा में नहीं ले जाता है। अहंकार नरक का द्वार है, और स्वाभाविक, प्रामाणिक, सच्ची बात जो तुम्हारे केंद्र से आती है, स्वर्ग का द्वार है। तुम्हें उसे खोजना होगा और उसे कार्यान्वित करना होगा। यदि तुम उसे बहुत ध्यानपूर्वक समझते हो, तो जल्दी ही तुम्हें बिलकुल निश्चित हो जाएगा कि स्वभावगत क्या है, और अहंकार से क्या आया है। तब अहंकार के पीछे मत चल देना। वस्तुत: तब तुम स्वयं ही अहंकार का अनुसरण नहीं कर रहे होओगे। प्रयास करने की कोई आवश्यकता ही न रहेगी; तुम तो बस स्वाभाविक चीज के पीछे ही चल रहे होओगे। स्वाभाविक बात दिव्य होती है। और स्वभाव में परम स्वभाव छिपा होता है। यदि तुम स्वभाव का अनुसरण करते हो तो बाद में, धीरे-धीरे, बिना कोई शोर किए ही अचानक एक दिन स्वभाव तिरोहित हो जाएगा और परम स्वभाव प्रकट हो जाएगा। स्वभाव ले जाता है परमात्मा की ओर, क्योंकि परमात्मा छिपा है स्वभाव में। पहले तो स्वाभाविक हो जाओ। तब तुम स्वभाव की नदी में बह रहे होओगे। और एक दिन नदी उतर जाएगी परम स्वभाव के सागर में। पांचवां प्रश्न आपने कहा शार्टकट लेने की कोई जरूरत नहीं होती। क्या आपके ध्यान शार्टकट नहीं हैं? क्योकि इधर पहले आपने कहा कि आपके ध्यान तुरंत छलांग लगा देने वाले हैं। तरंत छलांग लगाना सबसे लंबा मार्ग है। क्योंकि तुरंत छलांग के लिए तैयार होने में बहुत वर्ष लगेंगे; यहां तक कि बहुत से जीवन लग जाएंगे इसके लिए तैयार होने में। तो जब मैं कहता हूं 'तुरंत छलांग', तो क्या तुम तुरंत लगाते हो उसे? मेरे कहने मात्र से ही तुमने ऐसा किया नहीं होता। मैं कहता हूं तुरंत, लेकिन तुम्हारी दृष्टि से तुरंत में बहुत सारे जन्म लग सकते हैं। छलांग कभी भी शार्टकट नहीं होती, क्योंकि छलांग मार्ग नहीं है। लंबे मार्ग हैं और छोटे मार्ग हैं। छलांग बिलकुल नहीं है मार्ग; वह एक अचानक हुई घटना है। छलांग के लिए तैयार होने का अर्थ हैमरने के लिए तैयार होना। छलांग लगाने को तैयार होने का अर्थ है-अज्ञात में, असुरक्षा में अपरिचित में छलांग लगाने को तैयार होना। इस तैयारी में बहुत से वर्ष लगेंगे।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy