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________________ यही है गुरु द्वारा तुम्हें पुनर्जीवन दिए जाने का अर्थ फिर से तुम बच्चे बन गए; तुम्हारा अस हो गया, तुम्हारी स्लेट धुल गई। कैसे तुम उस पहली जगह पहुंच सकते हो, जहां से तुम इस संसार में प्रविष्ट हुए थे, चालीस, पचास वर्ष पहले? और समाज ने तुम्हें पकड़ लिया, तुम्हें फीस लिया, तुम्हें भटकाया गया। पचास वर्ष तक तुम भटके और अब अचानक तुम मेरे पास आ गए हो। मुझे केवल एक ही बात करनी है उसे धोकर साफ कर देना है जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है; तुम्हें अपने बचपन तक ले आना है, उस आरंभिक अवस्था तक जहां से तुमने यात्रा शुरू की थी, और यात्रा को फिर से शुरू होने देने में तुम्हारी मदद करनी है। तीसरा प्रश्न : आपने कहा कि किसी के द्वारा प्रभावित हो जाना अशुद्ध और अस्वाभाविक हो जाना है। लेकिन आपके व्यक्तित्व और शब्दों द्वारा प्रभावित हुए बिना कोई खोजी आपका शिष्य कैसे? यदि शब्दों द्वारा और व्यक्तित्व द्वारा प्रभावित होते हो तो तुम कभी भी शिष्य नहीं हो सकते; तुम नकल करने वाले बन जाओगे और एक शिष्य नकल करने वाला नहीं होता है। लेकिन मैं समझता हूं तुम्हारी तकलीफ तुम जुड़ने का केवल एक ही ढंग जानते हो और वह है प्रभावित हो जाना। यही कुछ किया है समाज ने तुम्हारे साथ यदि तुम प्रभावित होते हो, तो तुम सोचते हो कि तुम जुड़े हुए हो। तो तुम नहीं जानते कि शिष्य कैसे हुआ जाए। तुम केवल यही जानते हो कि विद्यार्थी कैसे बना जाए - स्व छाया घटना । तुम जब तुम सुनते हो मुझे, तो भूल जाना प्रभावित होने के बारे में। जब तुम सुनते हो मुझे, तो बस केवल सुनो। मेरे साथ रहो, खुले हुए किसी भी ढंग से निर्णय देने की कोशिश मत करना। जो कुछ कह रहा हूं में, तुम तो बस खुले रहो और सुनो, उसे आने दो, मुझे तुममें व्यापने दो, लेकिन निर्णय मत दो। मत कहना कि ही, यह ठीक है। क्योंकि तब तुम प्रभावित हुए। यदि तुम कहते हो, 'नहीं, यह ठीक नहीं है तब तुम प्रभावित न होने की कोशिश कर रहे होते हो। एक तो विधायक प्रभाव है, दूसरा , नकारात्मक प्रभाव, और दोनों प्रकार गलत होंगे। मुझे 'ही' मत कहना, मुझे 'ना' मत कहना। बिना ही ना कहे, तुम बस यहां मौजूद क्यों नहीं हो सकते? सुनो, देखो, चीजों को घटने दो। यदि तुम कहते हो, 'ही' उस 'ही' का अर्थ होता है अब तुम अनुकरण करने को तैयार हो। यदि तुम ना कहते हो तो इसका अर्थ होता है : नहीं, तुम मेरा अनुकरण नहीं करोगे, तुम कहीं जा रहे हो किसी दूसरे का अनुकरण करने को। तुम्हारा कोई और गुरु हैं; कोई और ही है गुरु जिसका अनुकरण तुम करोगे। यह
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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