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________________ जानता था, कुछ स्वप्नों के कुछ टुकड़े मात्र थे जिनकी व्याख्या उसने की-और उसने सोचा कि उसने जीवन की व्याख्या कर दी। तुम स्वप्नों की व्याख्या किए चले जाते हो, और तुम सोचते हो कि स्वप्न वास्तविकता हैं। पूरब में हमारा दृष्टिकोण एकदम विपरीत है। हम जीवन में झांकते रहे हैं और हमने पाया कि जीवन स्वयं एक सपना है। तुम सोचते हो कि स्वप्नों की व्याख्या करके तुम सत्य की व्याख्या कर देते हो। ठीक इसके विपरीत, हमने झांका है जीवन में और पाया है कि वह स्वप्न के अतिरिक्त और कुछ नहीं। और यह हिचकिचाहट क्यों? का के लिए पूरब एक भय था। वह भयभीत था पूरब से और कारण था इसका कुछ। वह था भयभीत पूरब से क्योंकि पूरब उदघाटित कर देता उसकी अपनी समझ की सच्चाई को–कि वह झूठ था। यदि वह गया होता रमण के पास, यदि वह गया होता पूरब के किसी और संत के पास, तो वह तुरंत जान गया होता कि जो कुछ उपलब्ध किया है उसने, वह कुछ नहीं था। वह तो मात्र मंदिर की सीढ़ियों पर था। अभी वह प्रविष्ट नहीं हुआ था मंदिर में। लेकिन पश्चिम में कोई भी चीज चल जाती है। बिना उसके जाने कि आत्म-ज्ञान क्या है, वे उसे आत्म-ज्ञान कह देते हैं। तुम उसे कुछ भी कह सकते हो, वह तुम पर निर्भर करता है। आत्म-ज्ञान है अनात्म तक चले आना, भीतर के नितांत शून्य तक आ पहुंचना, उस बिंदु तक आ पहुंचना जहां तुम नहीं होते। बूंद समुद्र में खो जाती है और केवल समुद्र का अस्तित्व होता है। तो कौन देखता है स्वप्न? तो कौन बचता है वहां स्वप्न देखने को? घर खाली होता है, वहां कोई नहीं बचता। दूसरा प्रश्न आपने कहा कि किसी प्रकार की नकल बुद्ध की भी नकल शुद्ध चेतना के लिए प्रतिकूल होती है। लेकिन हम देखते कि हमारा सांस्कृतिक जीवन नकल के अतिरिक्त और कुछ नहीं उस अवस्था में क्या स्वयं संस्कृति ही प्रतिकूल है धर्म के लिए? हा, संस्कृति, समाज, सभ्यता, सभी कुछ प्रतिकूल है धर्म के लिए। धर्म एक क्रांति है, तुम्हारी सांस्कृतिक संस्कार–बद्धताओं के लिए एक क्रांति, तुम्हारी सामाजिक अनुकूलन की क्रांति, वे सारे जीवन-क्षेत्र जिन्हें तुमने जीया और तुम जी रहे हो उनमें आयी एक क्रांति।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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