SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और रोग अस्तित्वगत है। व्यक्ति आध्यात्मिक रोग से पीड़ित होता है। स्वप्न किसी काम के न होंगे। वस्तुत: स्वप्न कर क्या सकते हैं? ज्यादा से ज्यादा वे तुम्हारे अचेतन को थोड़ा और समझने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं। स्वप्न अचेतन की भाषा हैं, प्रतीक हैं, लक्षण हैं, इशारे हैं और अचेतन के संकेत हैं; चेतन के प्रति अचेतन का संदेश हैं। स्वप्नों की व्याख्या करने में मनोविश्लेषक तुम्हारी मदद कर सकते हैं। वे माध्यम बन सकते हैं, वे तुम्हें बता सकते हैं कि तुम्हारे स्वप्नों का अर्थ क्या है। निस्संदेह, यदि तुम अपने स्वप्न का अर्थ समझ सको, तो तुम थोड़ा और निकट आ जाओगे तुम्हारे अचेतन के। यह बात तुम्हें मदद देगी तुम्हारे अचेतन के साथ और ज्यादा अनुकूलित होने में। तुम्हें थोड़ी मदद मिलेगी। तुम्हारे दोनों हिस्से, चेतन और अचेतन, बहुत ज्यादा दूर नहीं रहेंगे; वे थोड़े और निकट होंगे। तुम पहले की तरह उतने विखंडित न रहोगे। थोड़ा एकत्व, एक प्रकार का एकत्व तुममें बना रहेगा। तुम ज्यादा सामान्य हो जाओगे, लेकिन सामान्य होने में कुछ नहीं है। सामान्य होना तो बात करने जैसी बात भी नहीं है। सामान्य होने का तो मतलब हुआ कि तुम वैसे हो जैसे कि तुम्हें साधारणतया होना चाहिए; कुछ और नहीं घटा है, पार का कुछ तुममें उतरा ही नहीं है। समाज में भी तुम ज्यादा अनुकूलित व्यक्ति बन जाओगे। निस्संदेह, तुम थोड़े बेहतर पति बन जाओगे, थोड़ी बेहतर मां, थोड़े बेहतर मित्र, लेकिन केवल थोड़े से ही लेकिन यह कोई आत्म-साक्षात्कार नहीं है। और जब हा बात करता है आत्म-साक्षात्कार की स्वप्न के विश्लेषण दवारा, तो वह बहत नासमझी भरी बात करता है। यह आत्म-साक्षात्कार नहीं है, क्योंकि आत्म -साक्षात्कार केवल तभी होता है जब मन नहीं बचता। व्याख्यायित स्वप्न, व्याख्यायित नहीं होते, वे मन से संबंधित होते हैं, वे मन का हिस्सा होते हैं। और पश्चिम का कोई मनोविज्ञान-सिवाय गुरजिएफ, इकहार्ट और जेकब बोहमे के-पश्चिम का कोई मनोविज्ञान मन के पार नहीं जाता। और ये थोड़े से लोग, जेकब बोहमे, इकहार्ट और गुरजिएफ, वस्तुत: पश्चिम से संबंधित ही नहीं हैं, वे संबंधित हैं पूरब से। उनका सारा दृष्टिकोण ही पूरब का है। वे पैदा हुए हैं पश्चिम में, लेकिन उनका दृष्टिकोण, उनके जीवन का ढंग, उनकी पूरी समझ पूरब की है। जब मैं कहता हूं 'पूरब की' तो सदा याद रखना कि भौगोलिक रूप से मैं अर्थ नहीं करता। मेरे देखे, पूरब एक दृष्टि है। पश्चिम भी एक दृष्टि है। भूगोल से मेरा कोई संबंध नहीं। पश्चिम तो चीजों को देखने का एक ढंग है, पूरब भी एक ढंग है चीजों को देखने का। जब पूरब देखता है चीजों को तो वह देखता है समग्र की ओर, और जब पश्चिम देखता है चीजों को, वह सदा देखता है एक हिस्से की ओर। पश्चिमी दृष्टि विश्लेषणात्मक है-वह विश्लेषण करती है। पूर्वीय दृष्टि संश्लेषणात्मक है-वह संश्लेषण करती है, वह अनेक में एक को खोजने का प्रयास करती है। पश्चिमी दृष्टि एक में अनेक को खोजने का प्रयास करती है। पश्चिमी दृष्टि विश्लेषण करने में, चीर-फाड़ करने में, चीजों को अलग-अलग करने में बहुत होशियार हो गई है। असागोली की साइकोसिन्थसिस जैसी कार्यविधि भी सच्चा संश्लेषण नहीं है, क्योंकि असली
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy