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________________ जविद्या क्या है? इस शब्द का अर्थ है अज्ञान, लेकिन अविद्या कोई साधारण अज्ञान नहीं। इसे बहुत गहरे समझना होगा। अज्ञान है ज्ञान की कमी। अविद्या ज्ञान की कमी नहीं, बल्कि जागरूकता की कमी है। अज्ञान बहत आसानी से मिट सकता है, तुम ज्ञान उपार्जित कर सकते हो। यह केवल स्मृति के प्रशिक्षण की ही बात होती है। शान यांत्रिक होता है, किसी जागरूकता की जरूरत नहीं होती। वह उतना ही यांत्रिक होता है जितना कि साधारण अज्ञान। अविद्या है जागरूकता की कमी। व्यक्ति को ज्यादा और ज्यादा बढ़ना होता है चेतना की ओर, न कि ज्यादा ज्ञान की ओर। केवल तभी अविद्या मिट सकती है। अविद्या ही है जिसे गुरजिएफ 'आध्यात्मिक निद्रा' कहां करता था। व्यक्ति घूमता-फिरता है, जीता है, मरता है, न जानते हुए कि वह जीता क्यों है, न जानते हुए कि वह आया कहां से और किसलिए, न जानते हुए कि वह कहां बढ़ता रहा और किसलिए। गुरजिएफ इसे कहते हैं 'निद्रा', पतंजलि इसे कहते हैं, 'अविद्या'। दोनों का एक ही अर्थ है। तुम नहीं जानते तुम हो क्यों! तुम यहां इस संसार में, इस देह में, इन अनुभवों में तुम्हारे होने का प्रयोजन जानते नहीं। तुम बहुत सारी चीजें करते हो बिना यह जानते हुए कि तुम उन्हें क्यों कर रहे हो, बिना जाने हुए कि तुम उन्हें कर रहे हो, बिना जाने हुए कि तुम कर्ता हो। हर चीज ऐसे चलती है जैसे गहरी निद्रा में पड़ी हो। अविद्या, यदि मुझे तुम्हारे लिए इसका अनुवाद करना पड़े, तो इसका अर्थ होगा सम्मोहन। आदमी जीता है एक गहरे सम्मोहन में। मैं सम्मोहन पर काम करता हूं, क्योंकि सम्मोहन को समझना ही एकमात्र तरीका है व्यक्ति को सम्मोहन के बाहर लाने का। सारी जागरूकता एक तरह की सम्मोहननाशक है, इसलिए सम्मोहन की प्रक्रिया को बहुत-बहुत साफ ढंग से समझ लेना है, केवल तभी तुम उसके बाहर आ सकते हो। रोग को समझ लेना है, उसका निदान कर लेना है; केवल तभी उसका इलाज किया जा सकता है। सम्मोहन आदमी का रोग है, और सम्मोहन विहीनता होगी एक मार्ग। एक बार मैं काम करता था एक आदमी पर और वह बहुत अच्छा माध्यम था सम्मोहन के लिए। संसार के एक तिहाई लोग, तैंतीस प्रतिशत, अच्छे माध्यम होते हैं, और वे लोग बुद्धि विहीन नहीं होते हैं। वे लोग होते हैं बहुत-बहुत बुद्धिमान, कल्पनाशील, सृजन्त्रत्मक। इसी तैंतीस प्रतिशत में होते हैं सभी बड़े वैज्ञानिक, सभी बड़े कलाकार, कवि, चित्रकार, संगीतकार। यदि कोई व्यक्ति सम्मोहित हो सकता है, तो यह बात यही बताती है कि वह बहुत संवेदनशील है। इसके ठीक विपरीत बात प्रचलित है लोग सोचते हैं कि वह व्यक्ति जो थोड़ा मूर्ख होता है केवल वही सम्मोहित हो सकता है। यह बिलकुल गलत बात है। करीब-करीब असंभव ही होता है किसी मूढ को सम्मोहित करना, क्योंकि वह सुनेगा नहीं, वह समझेगा नहीं और वह कल्पना नहीं कर पाएगा। बड़ी तेज कल्पनाशक्ति की जरूरत होती है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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