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________________ जाता : दर्द होता और पीडा उठती और मितली और हर तरह की चीजें! लेकिन उसे इतना ज्यादा पसंद था वह फल कि उसे न खाना असंभव होता। कुछ दिनों बाद वह खा लेता, फिर और फिर। वह कहता है, एक दिन मेरे पिता बाजार गए, मुझे अपने साथ ले गए और बहुत बड़ी मात्रा में वह फल खरीदा। मैं बुश था और हैरान था कि क्यों खरीद रहे हैं वे इतना? वे सदा इसके विरुद्ध रहे वे सदा कहते थे मुझसे कि उसे कभी न खाना। तो क्या हो गया! कैसे अच्छे पिता हैं! तब गुरजिएफ केवल नौ वर्ष का ही था, उसके पिता ने छड़ी पकड़ी हाथ में और वे बोले, 'तुम वह सारे का सारा खा जाओ। वरना मैं तुम्हें पीट-पीट कर मार ही डालूंगा।' और वह खतरनाक आदमी था। आंसू बह रहे थे और गुरजिएफ खाए जा रहा था, और उसे खाना था उतना सारा। वमन कर दिया उसने, लेकिन उसका पिता बहुत ज्यादा कठोर व्यक्ति था। उसने वमन कर दिया और तीन सप्ताह तक वह बीमार पड़ा रहा पेचिश से, वमन से और बुखार से। फिर फल समाप्त हो गया। वह कहता है, 'अभी भी जब कि मैं साठ वर्ष का हं यदि मुझे कहीं दिखता है वह फल, तो मेरा सारा शरीर कैपने लगता है। मैं देख तक नहीं सकता उस फल की ओर!' पूरी तरह भोग लेना गहरी समझ निर्मित कर देता है जो शरीर की जड़ों तक उतरती है। मैं कहता हूं तुमसे 'जाओ और पूरी तरह डूबो भोग में।' कुछ बुरा नहीं इसमें। यदि तुम सचमुच किसी चीज को भोगते हो और अपने को रोकते नहीं, तो इसमें से बाहर निकलोगे ज्यादा प्रौढ़ होकर। अन्यथा, भोगने ह भाव, वह विचार, सदा पकड़े रहेगा-वह तुम्हें घेरे रहेगा, वह एक प्रेत बन जाएगा। जो लोग ब्रह्मचर्य का व्रत लेते हैं, वे सदा आविष्ट रहते हैं-कामवासना के प्रेत दवारा। जो लोग किसी भी तरह का नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं, वे सदा भोग के विचार से, सारे बंधन तोड़ने के विचार से, अनुशासनों और नियंत्रणों के विचार से घिरे रहते हैं, और फिर दनादन सिर के बल कूद पड़ते हैं इसमें। जीवन को तुम्हें ले जाने दो जहां कहीं वह तुम्हें ले जाता है और भयभीत मत होओ। भय एकमात्र ऐसी चीज है जिससे कि किसी को भयभीत होना चाहिए, और कोई ऐसी चीज नहीं। बढ़ो! हिम्मती बनो और निर्भीक बनो, और मैं कहता हूं तुमसे कि धीरे- धीरे भोगने का अनुभव ही, सुख के प्रति संवेदनशील होना ही तुम्हें शांत कर देगा। तुम केंद्रस्थ हो जाओगे। लेकिन मैं संवेदनशीलता के हक में हूं। यदि वह भोगने का भाव भी लाए, यदि वह सुखवादिता भी लाए तो भी ठीक है। मैं भोग के भाव से और सुखवादिता से भयभीत नहीं हूं। मैं भयभीत हूं केवल एक चीज से: कि रस में डूबने और सुखवादी होने का भय तुम्हारी संवेदनशीलता को मार न दे। यदि वह मर जाती है, तो तुमने कर ली होती है आत्महत्या। संवेदनशील होते हो, तो तुम जीवंत होते हो, होशपूर्ण होते हो; जितने ज्यादा संवेदनशील होते हो, उतने ज्यादा जीवंत और होशपूर्ण होते हो। और जब तुम्हारी संवेदनशीलता समग्र हो जाती है, तो तम प्रवेश कर चुके होते हो भगवत्ता में।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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