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________________ इसके विपरीत, हर कोई नाखुश जान पड़ता है। बच्चा कूद रहा हो और दौड़ रहा हो, और सारा परिवार नाखुश होता है। बच्चा बिस्तर में बीमार पड़ा हो, और सारा परिवार सहानुभूतिपूर्ण होता है। बच्चा जानना शुरू कर देता है कि किसी न किसी कारण बीमार होना, दुखी होना अच्छा ही होता है; खुश होना और नाचना और कूदना और जीवंत रहना बुरा है। वह सीख रहा होता है यह और इसी तरह ही तुमने सीखा है। मेरे देखे, जब कोई बच्चा खुश होता है, कूद रहा होता है, तो सारे परिवार को खुश होना चाहिए और कूदना चाहिए बच्चे के साथ। और जब बच्चा बीमार होता है, तब बच्चे का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन कोई सहानुभूति नहीं दिखानी चाहिए। ध्यान रखना ठीक है; सहानुभूति ठीक नहीं। अ-प्रेम, तटस्थ-सतह पर तो बड़ा कठोर लगेगा? बच्चा बीमार है और तुम तटस्थ हो। ध्यान रखना, दवाई देना, लेकिन तटस्थ रहना, क्योंकि एक बड़ी सूक्ष्म घटना घट रही होती है। यदि तुम सहानुभूति और करुणा और प्रेम अनुभव करते हो और तुम इसे जता देते हो बच्चे को, तो तुम हमेशा के लिए नष्ट कर रहे होते हो बच्चे को। अब वह चिपकेगा दुख के साथ, दुख कीमती बन जाता है। और जब कभी वह कूदता है और नाचता है और खुशी में चीखता है चारों तरफ और घर में दौड़ता फिरता है, तो हर कोई चिढ़ा होता है। उस क्षण उत्सव मनाओ, डूबो उसके साथ, और सारा संसार अलग जान पड़ेगा। लेकिन अभी तक समाज गलत ढांचों पर ही बना रहा है, और वे ढांचे स्थायित्व पा लेते हैं। इसलिए तुम दुख से चिपकते हो। तुम मुझसे पूछते हो, 'हमारे जैसे साधारण आदमी के लिए यह कैसे संभव है कि बिलकुल अभी उत्सव मनाए-यही और अभी? नहीं, वैसा संभव नहीं है। किसी ने कभी तुम्हें उत्सव मनाने नहीं दिया। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे मन में बैठे हैं। तुम्हारी मृत्यु के क्षण तक तुम्हारे माता-पिता तुम्हारा पीछा करते हैं। निरंतर वे तुम्हारे पीछे लगे रहते हैं, चाहे वे मर भी चुके हैं। माबाप बहुत ज्यादा विनाशकारी हो सकते हैं, अभी तक वे ऐसे ही रहे हैं। मैं नहीं कह रहा कि तुम्हारे माता-पिता जिम्मेदार हैं, क्योंकि सवाल उनका नहीं। उनके माता-पिता ने भी यही कुछ किया था उनके साथ। सारा ढांचा ढर्रा ही गलत है, मनोवैज्ञानिक रूप से गलत है। ऐसी बातों के भी कारण होते हैं। इसलिए ऐसी गलत बात चलती ही चली जाती और उसे रोका नहीं जा सकता। वैसा करना असंभव जान पड़ता है। निस्संदेह इसके कारण होते हैं। पिता के अपने कारण होते हैं हो सकता है वह अखबार पढ़ रहा हो और बच्चा कूदता हो और चीखता हो और हंसता हो, लेकिन तो भी एक पिता को तो ज्यादा समझदार होना चाहिए। अखबार किसी मूल्य का नहीं। यदि तुम उसे चुपचाप पढ़ भी लो, तो क्या मिलने वाला है तुम्हें उससे? फेंक दो अखबार को! लेकिन पिता तो है राजनीति में, व्यापार में, और उसे जानना है इस बारे में कि क्या घट रहा है। वह महत्वाकांक्षी है और अखबार उसकी महत्वाकांक्षा का एक हिस्सा है। यदि किसी को कोई महत्वाकांक्षा पूरी करनी होती है, कोई लक्ष्य पाने होते हैं, तो उसे जानना पड़ता है संसार को। बच्चा गड़बड़ी पैदा करने वाला जान पड़ता है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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