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________________ तुम्हारी । 'तुम कुछ नहीं हो, जमीन पर चलते बड़े कीड़े हो ! कुछ बनो। प्रमाणित करो कि परमात्मा के सामने तुम कुछ हो' – जैसे कि तुम्हारा विशिष्ट रूप प्रमाणित करना हो। लेकिन मैं कहता हूं तुमसे कि यह बिलकुल व्यर्थ है। ये धर्म बातें किए जा रहे हैं अधर्म की। तुम्हें जरूरत नहीं कुछ प्रमाणित करने की। यह घटना ही कि ईश्वर ने तुम्हें निर्मित किया, काफी है; तुम स्वीकृत हुए। ईश्वर ने ममता से तुम्हें सम्हाला, यह पर्याप्त है और ज्यादा क्या प्रमाणित कर सकते हो तुम? तुम्हें बड़ा चित्रकार बनने की जरूरत नहीं; तुम्हें बड़ा नेता बनने की जरूरत नहीं; तुम्हें बड़ा संत बनने की जरूरत नहीं। बड़ा बनने की कोई जरूरत ही नहीं, क्योंकि तुम बड़े हो ही इस पर ही है मेरा जोर; तुम पहले से ही वह हो, जो कि तुम्हें होना चाहिए। शायद तुमने इसे जाना न हो, जिसे मैं जानता हू। तुमने शायद अपनी सत्यता से साक्षात्कार न किया हो, जिसे कि मैं जानता हूं। तुमने शायद अपने भीतर झांककर देखा न हो और भीतर के उस सम्राट को न देखा हो, जिसे कि मैं जानता हूं। शायद तुम सोच रहे होओगे कि तुम भिखारी हो और सम्राट होने की कोशिश कर रहे हो लेकिन जैसे कि मैं देखता हूं? तुम पहले से ही सम्राट हो । उत्सव को स्थगित करने की जरा भी जरूरत नहीं है। तुरंत ठीक इसी क्षण उत्सव मना सकते हो तुम । किसी और चीज की जरूरत नहीं । उत्सव मनाने को जीवन की जरूरत होती है, और जीवन तुम्हारे पास है। उत्सव मनाने को स्व-सत्ता की जरूरत होती है और स्व-सत्ता तुम्हारे पास है। उत्सव मनाने के लिए वृक्षों और पक्षियों और सितारों की जरूरत होती है, और वे वहा हैं और किस चीज की जरूरत है तुम्हें? यदि तुम्हें ताज पहना दिया जाए, और बंद कर दिया जाए सोने के महल में, तो क्या तुम उत्सव मनाओगे? वस्तुतः तब ऐसा ज्यादा असंभव हो जाएगा। क्या तुमने कभी किसी सम्राट को सड़क पर हंसते और नाचते और गाते देखा है? नहीं, वह तो पिंजरे में बंद है, कैद है सभ्य व्यवहार हैं, शिष्टाचार हैं। कहीं किसी जगह, बड रसल ने लिखा है कि जब पहली बार वह बीहड़ पर्वतो में बसने वाली आदिवासियों की एक आदिम जाति को देखने गया, तो उसे ईर्ष्या हुई, बहुत ज्यादा ईर्ष्या हुई। उसने अनुभव किया कि जिस ढंग से वे नृत्य कर रहे थे वह ऐसा था जैसे कि हर कोई सम्राट हो! उनके पास ताज न थे, लेकिन उन्होंने ताज बनाए हुए थे पत्तों के और फूलों के हर स्त्री सम्राज्ञी थी। उनके पास कोहनूर न थे, तो भी जो कुछ था उनके पास बहुत था, पर्याप्त था। सारी रात वे नाचते रहे और फिर वे सो गए, वहीं नाच के फर्श पर सुबह वे फिर काम पर आ गए थे। सारा दिन काम किया था उन्होंने र और फिर सांझ तक वे तैयार थे उत्सव मनाने के लिए, नृत्य करने के लिए। रसल कहता है, 'उस दिन मैंने सचमुच ईर्ष्या अनुभव की मैं ऐसा नहीं कर सकता।' कुछ गलत हो गया है कोई चीज तुम्हें भीतर हताश करती है तुम नाच नहीं सकते, तुम गा नहीं सकते, कोई चीज रोके रखती है। तुम एक अपंग जिंदगी जीते हो। अपंग होना तुम्हारा भवितव्य न था, तो भी तुम जीते हो अपंग जीवन, तुम जीते हो एक लकवा खाया हुआ जीवन और तुम सोचते
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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