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________________ तुम जीवन के ज्यादा निकट नहीं जा सकते, तुम दिखावा कर रहे होते हो कि तुम जीवन से ज्यादा ऊंचे हो, जीवन से ज्यादा महान हो, जीवन से ज्यादा बड़े हो। दूरी निर्मित करनी पड़ती है, और केवल तभी तुम जीवन से ज्यादा बड़े होने की बात का दिखावा कर सकते हो। लेकिन जीवन तो कुछ नहीं गंवा रहा, तुम्हारी इस मूढ़ता द्वारा तुम्हीं अधिकाधिक संवेदनशून्य बनते जा रहे हो। तुम तो पहले से ही मरे हुए हो। जीवन मांग करता है तुम्हारे ज्यादा जीवंत होने की। जब पतंजलि कहते हैं 'तप', तो उनका मतलब है-सरल-सहज होओ, सहजता को गढ़ो मत। क्योंकि गढ़ी हुई सरलता, सरलता नहीं होती है। गढ़ी हुई सरलता कैसे हो सकती है सरल? वह तो बहुत जटिल होती है, तुम प्रयास कर रहे होते हो, गणना कर रहे होते हो, आरोपण कर रहे होते हो। मैं जानता हूं एक व्यक्ति को, जहां वह रहता था उस गांव से मेरा गुजरना हुआ। मेरे ड्राइवर ने कहां, 'आपका मित्र तो यहीं रहता है, बस गाव के बाहर ही। तो मैंने कहा, 'अच्छा है। कुछ देर के लिए मैं जाऊंगा उससे मिलने, और देखूगा कि वह अब क्या कर रहा है।' वह एक जैन मुनि था। जब मैं पहुंचा उसके घर के पास तो उसे भीतर नग्न चलते हुए देख सकता था खिड़की से। जैन मुनियों की पांच अवस्थाएँ होती हैं; धीरे-धीरे वे अभ्यास करते हैं सरलता का। पांचवीं, आखिरी अवस्था पर वे नग्न हो जाते हैं। पहले वे पहनते हैं तीन वस्त्र, फिर दो, फिर एक, और फिर वह भी गिरा देना होता है। यह अवस्था सरलता का उच्चतम आदर्श होती है, जब कोई नितांत नग्न हो जाता है; धारण करने को कुछ न रहा-कोई बोझ नहीं, कोई कपड़े नहीं, कोई चीज नहीं। लेकिन मैं जानता था कि वह आदमी दूसरी अवस्था पर था, तो फिर क्यों हुआ वह नग्न? मैंने दवार खटखटाया। उसने खोला दवार, लेकिन अब तो वह लुंगी पहने हए था तो मैंने पूछा, 'बात क्या है? बिलकुल अभी तो मैंने तुम्हें खिड़की से देखा और तुम नग्न थे।' वह कहने लगा, 'हां, मैं अभ्यास कर रहा हूं। मैं पांचवीं, अंतिम अवस्था के लिए अभ्यास कर रहा हूं। पहले, मैं घर के भीतर अभ्यास करूंगा, फिर मित्रों के साथ, फिर धीरे-धीरे मैं गांव में जाया करूंगा और फिर दुनिया भर में। मुझे अभ्यास करना होगा। मुझे कम से कम थोड़े से वर्ष तो लगेंगे ही उस शर्म को गिराने में, संसार में नग्न घूमने के लिए पर्याप्त रूप से साहसी होने में।' मैंने कहां उससे, 'बेहतर था तुम सरकस में भरती हो गए होते। तुम हो जाओगे नग्न, लेकिन अभ्यास से आयी नग्नता सहज नहीं होती है; वह बहुत गुणनात्मक होती है। तुम बहुत चालाक होते हो, और तुम चालाकी के साथ कदम-दर-कदम सरक रहे होते हो। वस्तुत: तुम कभी नग्न होओगे ही नहीं। अभ्यास से आई नग्नता फिर कपड़ों की भांति ही होगी, बहुत सूक्ष्म कपड़ों की भांति। तुम उन्हें अभ्यास द्वारा निर्मित कर रहे होते हो।' 'यदि तुम किसी निर्दोष बालक की भांति अनुभव करते हो, तो तुम गिरा ही दोगे कपड़ों को और उसी तरह चलोगे संसार में। भय क्या है? कि लोग हसेंगे? क्या गलत है उनकी हंसी में?-हंसने दो उनको। तुम भी भाग ले सकते हो, तुम भी हंस सकते हो उनके संग। वे तुम्हारा मजाक उड़ाके? तो यह भी ठीक ही है, क्योंकि लोग तुम्हारा मजाक उड़ाए, इससे ज्यादा अहंकार को कुछ और नहीं मारता है। यह
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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