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________________ होता है।. वह होता है ठंडा, जीवंत होने को पर्याप्त ऊष्ण नहीं। जब वह पानी होता है, तो ज्यादा प्रवाहमान, ज्यादा जीवंत होता है, बंद नहीं। जब वह पिघल गया होता है, तब वह ज्यादा ऊष्ण होता है। लेकिन पानी तो नीचे की ओर बढ़ता है। जब वह वाष्पीभूत हो जाता है तो दिशा बदल चुकी होती है। वह अब और सपाट न रहा, वह ऊर्ध्वगामी बन जाता है; वह ऊपर की ओर बढ़ता है। पहले तो अधिकाधिक सचेत हो जाना जागने के समय। वह बात तुम तक ले आएगी ऊष्णता की एक निश्चित मात्रा। वह वास्तव में आंतरिक ऊष्णता की एक निश्चित डिग्री ही होती है, तुम्हारी चेतना का एक निश्चित तापमान जो कि तुम्हारी मदद करेगा अचेतन में बढने के लिए। तो, अधिकाधिक बोधपूर्ण हो जाना अचेतन में। ज्यादा प्रयास की जरूरत होगी, ज्यादा ऊर्जा निर्मित की जायेगी। तब अचानक एक दिन तुम पाओगे कि तुम ऊपर की ओर बढ़ रहे हो। तुम भारविहीन हो गये हो और अब गुरुत्वाकर्षण तुम्हें प्रभावित नहीं करता। तुम बन रहे हो अतिचेतन। अतिचेतन के पास सारी शक्ति होती है : वह होता है सर्वशक्तिमान, वह होता है सर्वज्ञ, वह होता है सर्वव्यापी। अतिचेतन है सब जगह। अतिचेतन के पास वह हर एक शक्ति है जो संभव होती है, और अतिचेतन देखता है प्रत्येक चीज को। वह बन गया होता है दृष्टि की परम स्पष्टता। यही अर्थ करते हैं पतंजलि जब वे कहते हैं, 'इस प्रकार योगी हो जाता है, सब का मालिक, अतिसूक्ष्म परमाणु से लेकर अपरिसीम तक का।' आज इतना ही। प्रवचन 22 - जागरूकता की कीमिया दिनांक 2 मार्च, 1975; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्नसार: 1-मैं क्यों विरोध अनुभव करता हूं स्वच्छंद, स्वाभाविक होने तथा जाग्रत होने के बीच?
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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