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________________ शून्यता है, कोई नहीं है वहां। तुम बढ़ते हो, तुम खोजते हो, पर वहां कोई नहीं है। वहां केवल है एक केंद्रविहीन, सीमाविहीन विशाल विस्तार चैतन्य का। जब व्यक्तित्व खो जाता है और सारे नाम संबंधित होते हैं व्यक्तित्व से-तब पहली बार संपूर्ण व्यापकता उदित होती है तुममें। नाम-रूप का संसार, नाम का और रूपाकारों का संसार तिरोहित हो चुका होता है, और अकस्मात निराकार आ पहुंचता है। ऐसा तुम्हें भी घटने वाला है। इससे पहले कि ऐसा :घटे, यदि तुम्हारे कुछ प्रश्न हों पूछने को, तो पूछ लेना अपने व्यक्तित्व से, क्योंकि एक बार ऐसा घट जाता है, तो फिर तुम नहीं पूछ सकते। कोई होगा नहीं वहां पूछने को। एक दिन, अचानक तुम तिरोहित हो जाओगे। ऐसा घटे इससे पहले तुम पूछ सकते हो, लेकिन वह भी कठिन होता है, क्योंकि इसके घटने से पहले, तुम इतनी गहन निद्रा में होते हो कि कौन पूछेगा? यह घटे इससे पहले कोई होता नहीं पूछने को, और जब ऐसा घट चुका होता है तो कोई बचता नहीं जिससे कि पूछा जाए! दूसरा प्रश्न: कृपया समझाइए कि अंतिम समाधि में बीज कैसे जल जाता है? तुम हमेशा शब्दों से चिपक जाते हो! ऐसा स्वाभाविक है, मैं जानता हूं। जब तुम 'समाधि', 'निर्बीज समाधि', 'बीज जल चुका, अब कोई बीज न रहा,' इन शब्दों को सुनते हो, तो तुम शब्दों को सुनते हो और प्रश्न उभरते हैं तुम्हारे मन में। लेकिन यदि तुम मुझे समझ जाते हो, तब ये प्रश्न अप्रासंगिक हो जाएंगे। बीज जल जाता है, इसका यह अर्थ नहीं होता कि वैसा कुछ सचमुच ही घटता है, जो घटता है सीधा होता है। वह बस यही है : जब निर्विचार समाधि उपलब्ध होती है, विचार समाप्त हो जाते हैं। अकस्मात कोई बीज नहीं रहता जलने के लिए। वह कभी वहा था ही नहीं, तुम ही भ्रांति में थे। यह एक रूपक है और धर्म बात करता है रूपकों में, प्रतीकों में, क्योंकि उन चीजों के बारे में बोलने का कोई रास्ता नहीं है, जो कि अज्ञात से संबंधित हैं। यह एक प्रतीकात्मक रूपक है। जब ऐसा कहां जाता है कि बीज जल गया, तो मात्र इतना ही अर्थ होता है कि अब कोई इच्छा न रही जन्म लेने की, कोई इच्छा नहीं रही मरने की, कोई इच्छा नहीं रही न मरने की। बिलकुल कोई इच्छा रही ही नहीं। इच्छा ही है बीज, और इच्छा कैसे बनी रह सकती है जब कि विचार समाप्त हो चुके हों? इच्छा केवल सोचने द्वारा, सोच-विचार के रूप में ही अस्तित्व रख सकती है। जब विचार नहीं रहते मौजूद, तो तुम इच्छा
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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