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________________ वर्षों लगाए थे उसने और वह उसे किसी को देखने नहीं दे सकता था जब तक कि वह पूरा ही न हो जाए। फिर एक दिन उसने कहां सम्राट से, 'अब वह तैयार है और आप आ सकते हैं।' सम्राट आया अपने मंत्रियों और सेनापतियों और दरबार सहित, और वे बिलकुल आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने कभी कोई वैसी चीज देखी न थी। इतनी वास्तविक थी वह। चोटियां एकदम वास्तविक थीं। चोटियों के चारों ओर एक घुमावदार रास्ता था और रास्ता तो खो गया था कहीं। पूछा सम्राट ने, "कहां ले जाता है यह मार्ग ?' चित्रकार बोला, 'मैंने इस पर यात्रा नहीं की है। मैंने यात्रा नहीं की इस पर, तो कैसे जानूंगा मैं।' लेकिन सम्राट ने जोर दिया। वह बोला कि 'यह यात्रा का तो प्रश्न ही नहीं था। तुमने चित्र बनाया है इसका!' चित्रकार बोला, 'प्रतीक्षा कीजिए आप मुझे जाने दें और देखने दें।' ऐसा कहां जाता है कि वह गया चित्र में, खो गया, और कभी लौटा नहीं, इसकी कथा बताने को कि वह मार्ग कहां ले जोता था। ऐसा हो नहीं सकता, इसे मैं जानता हूं लेकिन निर्विचार में ऐसा घटता है। फूलों में अपार शून्य है। तुम्हारी प्रगाढ़तावश, तुम देखते हो फूल में और वहा होती है गहराई । तुम उतर सकते हो फूल में और खो सकते हो सदा के लिए तुम निर्विचारयुक्त देखते हो सुंदर चेहरे की ओर, और वहां अपार शून्यता होती है उसके सौंदर्य में तुम सदा सदा के लिए खो सकते हो, तुम उतर सकते हो उसमें हर चीज द्वार बन जाती है, हर चीज तुम्हारी दृष्टि की प्रगाढ़ता सहित सारे द्वार तुम्हारे लिए। - - - दरवाजे खुल जाते हैं जब सारे नियंत्रणों पर का नियंत्रण पार कर लिया जाता है तो निर्बीज समाधि फलित होती है और उसके साथ ही उपलब्ध होती है— जीवन मृत्यु से मुक्ति । ऐसा कभी – कभार होता है, सारे हिस्से चरम शिखर पर पहुंचते हैं, सारे बुद्धों का मिलन होता है: तंत्र और योग, झेन और हसीदवाद, सूफी और बाउल, सभी हिस्सों का हिस्से अलग - अलग हो सकते हैं —वे होते ही हैं –लेकिन जब शिखर आ पहुंचता है तो हिस्से तिरोहित हो जाते हैं। 1 'जब सारे दूसरे नियंत्रणों पर का नियंत्रण पार कर लिया जाता है क्योंकि पतंजलि कहते हैं कि वह फिर भी नियंत्रित अवस्था होती है। विचार तिरोहित हो गए होते हैं और अब तुम्हें अनुभूति हो सकती है अस्तित्व की, लेकिन फिर भी अनुभवकर्ता और अनुभव मौजूद रहता है, विषय और विषयी मौजूद रहते हैं शरीर के साथ शान अप्रत्यक्ष था। अब वह प्रत्यक्ष होता है, लेकिन फिर भी जाता अलग होता है शांत से अंतिम अवरोध कना रहता है, वह भेद । जब यह भी गिरा दिया जाता है, जब यह नियंत्रण पार कर लिया जाता है और चित्रकार खो जाता है चित्र में, जब
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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