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________________ व्याख्या तुम्हें दे दी जाती है और तुम उस व्याख्या द्वारा जीते हो। यह होती है अज्ञानी मन न जागे की अवस्था । अवस्था, निर्विचार समाधि में, यह सारी अवस्था बिखर जाती है। अचानक तुम इस रचनातंत्र के बाहर हो जाते हो तुम इस पर भरोसा नहीं करते, तुम बिलकुल गिरा ही देते हो सारी यंत्र प्रक्रिया तुम सीधे आ जाते हो ज्ञान के स्रोत तक तुम सीधे ही देखते हो फूल को । यह संभव होता है। यह संभव होता है केवल ध्यान की उच्चतम अवस्था में, निर्विचार में, जब कि विचार समाप्त हो जाते हैं। विचार ही हैं संपर्क । जब विचार समाप्त हो जाते हैं, तब सारी यंत्र - प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और तुम अलग हुए होते हो। अकस्मात अब तुम कैद में न रहे। तुम छिद्र द्वारा नहीं देख रहे होते। तुम खुले आकाश के संसार में आ पहुंचे हो। तुम चीजों को वैसा ही देखते हो जैसी कि वे हैं। और तुम देखोगे कि चीजें अस्तित्व नहीं रखतीं, वे तुम्हारी व्याख्याएं ही थीं केवल जीवंत सताएं रखती हैं अस्तित्व। संसार में चीजें नहीं हैं। एक चट्टान भी प्राणमयी है। चाहे कितनी ही गहरी सोयी हो, खर्राटे भर रही हो, चट्टान प्राणमयी होती है, क्योंकि परम स्रोत प्राणवान है। इसके सारे हिस्से प्राणवान हैं, आत्मवान हैं। वृक्ष एक प्राणवान सत्ता है, पक्षी एक प्राणवान सत्ता है, चट्टान एक प्राणवान सत्ता है। अकस्मात चीजों का संसार तिरोहित हो जाता है। 'चीज व्याख्या है इन जड़ नासमझों की और नशे में डूबे मन की इस प्रक्रिया के कारण हर चीज धुंधली हो जाती है। इस प्रक्रिया के कारण केवल सतह स्पर्शित होती है। इस प्रक्रिया के कारण तुम सत्य को चूक जाते हो, तुम जीते हो एक स्वप्न में। इस तरह से तुम एक स्वप्न निर्मित कर सकते हो। जरा कोशिश करना किसी दिन । तुम्हारी पत्नी सो रही होती हैं या तुम्हारा पति सो रहा होता है या कि तुम्हारा बच्चा- जरा सोए हुए व्यक्ति के पैरों पर बर्फ का टुकड़ा मल देना। थोड़ा सा ही करना ऐसा, बहुत ज्यादा नहीं, अन्यथा वह जाग जाएगा। थोड़ी देर ही करना ऐसा और उसे हटा लेना। तुरंत तुम देखोगे कि पलकों के तले की आंखें तेजी से गतिमान हो रही हैं, जिसे मनस्विद कहते हैं- 'आर ई एम - रेपिड आई मूवमेंट, आंखों की तेजगति । जब आंखें तेजी से गतिमान हो रही होती हैं, तब स्वप्न शुरू हो चुका होता है। व्यक्ति कोई चीज देख रहा होता है और इसीलिए आंखें इतनी तेजी से गतिमान हो रही होती हैं। फिर स्वप्न के मध्य में ही, जगाना उस व्यक्ति को और पूछना कि उसने क्या देखा या तो उसने देखा होगा कि वह एक नदी में से गुजर रहा था जो कि बहुत ठंडी है, बर्फ जैसी ठंडी, या फिर वह चल रहा था: बर्फ पर, या वह पहुंच चुका है गौरीशंकर पर वह कुछ इसी तरह का स्वप्न देखेगा और तुमने निर्मित किया था स्वप्न, क्योंकि तुमने धोखा दिया पहले जड़ नासमझ को, शरीर को तुम पैरों को छूते हो बर्फ द्वारा, तुरंत वह पहला जड़ मूढ़ काम करने लगता है, दूसरे जड़ मूढ़ स्नायुतंत्र ने संदेश दे दिया, तीसरा मूढ़ जड़
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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