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________________ का, स्व का अनुभव देता है-वह है दूसरा वर्तुल। और फिर प्रार्थना तुम्हारी मदद करती है अनात्म को अनुभव करने में, या ब्रह्म को, या परमात्मा को अनुभव करने में। ये हैं तीन चरण: कामवासना से प्रेम तक, प्रेम से प्रार्थना तक। और प्रेम के कई आयाम होते हैं, क्योंकि यदि सारी ऊर्जा प्रेम है तो फिर प्रेम के कई आयाम होने ही होते हैं। जब तुम किसी स्त्री से या किसी पुरुष से प्रेम करते हो तो तुम परिचित हो जाते हो अपनी देह के साथ। जब तुम प्रेम करते हो गुरु से, तब तुम परिचित हो जाते हो अपने साथ, अपनी सत्ता के साथ और उस परिचय द्वारा, अकस्मात तुम सपूर्ण के प्रेम में पड़ जाते हो। स्त्री द्वार बन जाती है गुरु का, गुरु द्वार बन जाता है' परमात्मा का। अकस्मात तुम संपूर्ण में जा पहंचते हो, और तुम जान जाते हो अस्तित्व के अंतरतम मर्म को। जीसस ठीक ही कहते हैं, 'प्रेम है परमात्मा', क्योंकि प्रेम वह ऊर्जा है जो चलाती है सितारों को, जो चलाती है बादलों को, जो बीजों को फूटने देती है, जो पक्षियों को चहचहाने देती है, जो तुम्हें यहां होने देती है। प्रेम सबसे अधिक रहस्यपूर्ण घटना है। वह है 'ऋतम्भरा।' अंतिम प्रश्न: क्या गुरु कभी जंभाई लेते हैं? 1. वे जंभाई लेते हैं लेकिन वे संपूर्ण रूप से जंभाई लेते हैं। और यही एक बुध-पुरुष और अबुद्ध-पुरुष के बीच का भेद है। भेद है केवल समग्रता का। तुम जो कुछ करते हो, तुम करते हो आशिक रूप से। तुम प्रेम करते हो, लेकिन केवल तुम्हारा कोई हिस्सा ही प्रेम करता है। तुम सोते हो, लेकिन तुम्हारा एक हिस्सा ही सोता है। तुम खाते हो, लेकिन तुम्हारा एक हिस्सा ही खाता है। तुम जंभाई लेते हो, लेकिन तुम्हारा एक हिस्सा ही जंभाई लेता है। एक और हिस्सा होता है इसके विरुद्ध, उस पर नियंत्रण करता हुआ। एक सद्गुरु जीता है समग्र रूप से, जैसे और जो कुछ वह जीता है। यदि वह खाता है, तो वह समग्ररूप से खा रहा होता है। कुछ और होता ही नहीं सिवाय खाने के। जब वह चलता है, तो वह चलता है, चलने वाला वहां नहीं होता है। चलने वाले का तो अस्तित्व ही नहीं होता, क्योंकि कहां अस्तित्व रखेगा चलने वाला? चलना इतना समग्र है। तुम जंभाई लेते हो, तो तुम होते हो वहा। जब
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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