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________________ ऐसा घटता है कि एक शिष्य और गुरु का मिलन होता है, और वे अनुभव करते हैं समस्वरता को, तो वह क्षण संपूर्ण अस्तित्व के सबसे अधिक संगीतमय क्षणों में से एक होता है। तब उनके हृदय एक ही लय में धड़कते हैं, तब उनकी चेतना एक ही लय में प्रवाहित होती है तब वे एक दूसरे का हिस्सा हो जाते हैं एक दूसरे के अंश हो जाते हैं। जब तक कि ऐसा घट न जाए, मत ठहरना। भूल जाना मेरे बारे में। इसे एक स्वप्न की भांति समझ लेना। जितनी जल्दी से जल्दी हो सके भाग निकलना मुझसे दूर। और मैं हर ढंग से तुम्हारी मदद करूंगा भाग निकलने में, क्योंकि तब मैं तुम्हारे लिए नहीं। कोई और कहीं प्रतीक्षा कर रहा है तुम्हारी। और उन्हें चले जाना चाहिए उसी के पास, या वह आ जाएगा तुम्हारे पास। एक प्राचीन मिस्री परंपरा कहती है: जब शिष्य तैयार होता है तब गुरु के दर्शन होते हैं। महान सूफी संतो में से एक, झुनून, कहां करते थे, जब मैंने पाया परम सत्य को, तब मैंने कहां परमात्मा से, 'मैं खोज रहा था तुम्हें इतनी देर से, इतनी देर से, अनंतकाल से!' परमात्मा ने जवाब दिया 'इससे पहले कि तुमने तुम्हारी खोज आरंभ की तुम पा ही चुके थे मुझे, क्योंकि जब तक तुमने पाया नहीं होता तुम खोज आरंभ कर ही नहीं सकते।' ये बातें विरोधाभासी मालूम पड़ती हैं, लेकिन यदि तुम ज्यादा गहरे में जाते हो तो तुम एक बहुत गहन छिपा हुआ सत्य पाओगे उनमें। ठीक है यह इससे पहले कि तुमने मेरे बारे में सुना भी हो, मैं पहुंच चुका था तुम तक। ऐसा नहीं है कि मैं कोशिश कर रहा हूं पहुंचने की, इसी तरह ही घटता है यह। तुम यहां हो केवल तुम्हारे कारण ही नहीं, मैं यहां हूं केवल मेरे कारण ही नहीं। एक सुनिश्चित अंतर्संबंध घटता है। एक सनिश्चित अंतर्संबंध होता है। और एक बार जब तम समझ लेते हो अंतर्संबंध को, तभी एक वही गुरु ही श्रेष्ठ गुरु होता है। इस कारण बहुत कट्टरपन निर्मित हो जाता है अनावश्यक रूप से। ईसाई कहते हैं, 'जीसस एक मात्र बेटे उत्पन्न हुए हैं ईश्वर के।' यह बात बिलकुल ठीक होती है, यदि तालमेल बैठ जाता है तो जीसस ही एकमात्र बेटे उत्पन्न हुए हैं ईश्वर के -तुम्हारे लिए, हर एक के लिए नहीं। आनंद फिर-फिर कहते हैं बुद्ध के बारे में कि कोई कभी ऐसी सर्वोच्च संबोधि को उपलब्ध नहीं हुआ जैसे कि बुद्ध- 'अनुतर सम्यक संबोधि' -कभी इससे पहले किसी के द्वारा उपलब्ध नहीं हुई। नितांत सत्य है यह बात। ऐसा नहीं है कि पहले वह किसी और के द्वारा उपलब्ध नहीं की गयी है। इसके पहले लाखों उपलब्ध हो गए, किंतु आनंद के लिए वही बात संपूर्णतया सत्य है; आनंद के लिए कोई अन्य गुरु अस्तित्व ही नहीं रखता, केवल यह बद्ध ही हैं उसके लिए। 'प्रेम में, एक स्त्री संपूर्ण स्त्रीत्व बन जाती है, एक पुरुष संपूर्ण पुरुषत्व बन जाता। और समर्पण में जो कि प्रेम का उच्चतम रूप है, एक गुरु हो जाता है एकमात्र ईश्वर। इसीलिए शिष्यों को वे नहीं समझ
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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