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________________ साधारणतया तो अज्ञानी व्यक्ति सपाट जमीन की भांति होते हैं; हर चीज एक सी ही होती है। यदि भेद अस्तित्व रखते भी हैं तो इस तरह के ही होते हैं कि तुम्हारे पास छोटी कार होती है और किसी के पास बड़ी कार होती है, या कि तुम अशिक्षित होते हो और कोई शिक्षित होता है, या तुम गरीब होते हो और कोई अमीर होता है। यह तो कुछ नहीं। वास्तव में ये तो भेद न हुए। तुम्हारे पास सत्ता हो सकती है और कोई सड़क का भिखारी और गरीब हो सकता है, लेकिन यह अंतर नहीं है, ये बेजोड़पन नहीं हैं। यदि तुम्हारी सारी चीजें ले ली जाती हैं, तुम्हारी शिक्षा और तुम्हारी सता, तब तुम्हारे राष्ट्रपति और तुम्हारे भिखारी एक समान ही दिखाई पड़ेंगे। ', पश्चिम के बड़े मनसविदों में से एक है विक्टर फ्रेंकल। उसने मनोविश्लेषण में एक नई विचारधारा विकसित की है। वह उसे कहता है लोगोथैरेपी । वह एडोल्फ हिटलर के यातना - शिविरों में रहा था, और वह अपनी एक किताब में संस्मरण लिखता है कि जब वे कई सौ लोगों के साथ प्रवेश कर रहे थे यातना शिविरों में तो हर चीज दरवाजे पर ही ले ली जाती थी, हर चीज तुम्हारी घड़ी, हर चीज । अचानक ही, धनी व्यक्ति और निर्धन व्यक्ति सभी एक जैसे हो गए। जब तुम प्रवेश करते दरवाजे में तो तुम्हें गुजरना होता था इस परीक्षा से और हर किसी को बिलकुल ही नग्न होना पड़ता था। केवल इतना ही नहीं, बल्कि वह हर किसी के बाल भी मूड देते फ्रेंकल याद करता है कि हजारों लोगों सहित बाल मुडाए हुए, नग्न हो जाने से, अकस्मात सारे भेद तिरोहित हो जाते थे। वह एक सामूहिक अनुष्ठान होता था। तुम्हारे केश संवारने का ढंग, तुम्हारी कार, तुम्हारे मूल्यवान कपड़े, या फिर तुम्हारी हिप्पियों जैसी पोशाक यही होते हैं भेद । — सामान्य मनुष्यता अस्तित्व रखती है भीड़ की भांति । वस्तुत: तुम्हारे पास आत्माएं नहीं, तुम हो भीड़ का हिस्सा मात्र उसका एक अंश तुम प्रतिकृति होते हो प्रतिकृतियों की एक दूसरे की नकल करते हुए। तुम नकल करते हो पड़ोसी की और पड़ोसी नकल करता है तुम्हारी और यही कुछ चलता चला जाता है। लोग अध्ययन करते रहे हैं पेड़ों का और कीट-पतंगों का और तितलियों का। अब वे कहते हैं कि एक निरंतर नकल घट रही है प्रकृति में। तितलियां नकल करती हैं फूलों की, और फिर फूल नकल करते हैं तितलियों की कीडे नकल करते हैं वृक्ष की और फिर वृक्ष नकल करते हैं कीड़ों की अतः ऐसे कीटपतंगे होते हैं जो छिप सकते हैं उसी रंग के वृक्षों में, और जब वृक्ष बदलता है अपना सा, तो वे भी बदलते हैं अपना रंग तो अब वे कहते हैं कि सारी प्रकृति में निरंतर नकल की प्रक्रिया चलती है। वह व्यक्ति जो संबोधि को उपलब्ध होता है, वह हो जाता है शिखर की भांति, एक एवरेस्ट | दूसरी कोई और संबोधि भी होती है शिखर की भांति, एक और एवरेस्ट भीतर गहरे में वे उपलब्ध हो चुके होते हैं एक ही बात को, लेकिन वे होते हैं बेजोड़ । कोई सामान्य चीज अस्तित्व नहीं रखती बुद्ध - पुरुषों के बीच, यही है विरोधाभास वे माध्यम हैं एक ही समष्टि के, लेकिन उनके भीतर कोई बात एक जैसी दोहरती नहीं वे बेजोड़ माध्यम होते हैं।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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