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________________ जीवन बिलकुल असहनीय हो गया होता, यदि मृत्यु न होती। प्रेम असहनीय हो गया होता, यदि उसके विपरीत कुछ न होता। यदि तुम अपनी प्रेमिका से अलग न हो सको तो ऐसा असहनीय हो जाएगा। सारी बात ही इतनी एकरस हो जाएगी; वह अर्थहीनता निर्मित कर देगी। जीवन अस्तित्व रखता है विपरीतताओ सहित - इसीलिए वह इतना दिलचस्प है। एक साथ होना और दूर हो जाना, फिर साथ - साथ होना और दूर हो जाना; चढ़ना और उतरना । जरा सागर की उस लहर के बारे में सोचना जो चढ़ चुकी और गिर नहीं सकती! जरा उस सूर्य की सोचना जो उदय हो जाता है और अस्त नहीं हो सकता! एक से दूसरी ध्रुवता तक की गति इस बात का रहस्य है कि क्यों जीवन दिलचस्प बना रहता है। जब कोई जान लेता है ऋतम्भरा को, सब चीजों के आधारभूत नियम को, सबकी असली नींव को, तो हर चीज सुव्यवस्था में उतरने लगती है और समझ आ जाती है तब कोई शिकायत नहीं रहती । व्यक्ति स्वीकार कर लेता है कि जो 'कुछ है सुंदर है। इसीलिए जिन्होंने जाना है, वे सब कहते हैं, जीवन संपूर्ण है; तुम उसमें और संशोधन नहीं कर सकते। 'निर्विचार समाधि में चैतन्य आपूरित हो जाता है सत्य से, ऋतंभरा से ।' इसे कहना ताओ ताओ ज्यादा सही ढंग से अर्थ दे सकता है ऋतम्भरा का, किंतु यदि तुम बने रह सकते हो 'ऋतम्भरा शब्द के साथ, तो ऐसा ज्यादा सुंदर होगा। इसे रहने दो मौजूद इसकी ध्वनि भी ऋतम्भरा समस्वरता की कछ गुणवत्ता लिए रहती है सत्य कही ज्यादा रूखा सूखा होता है, एक तार्किक अवधारणा । , यदि तुम सत्य और प्रेम के जोड़ से कुछ बना सको तो वह ऋतम्भरा से ज्यादा निकट होगा। यह है हेराक्लाइटस की 'छिपी हुई समस्वरता । लेकिन ऐसा घटता है केवल तभी जब चेतना का विषय संपूर्णतया तिरोहित हो चुका होता है। तुम अकेले होते हो तुम्हारी चेतना के साथ और दूसरा कोई नहीं होता। बिना प्रतिबिंब का दर्पण! आज इतना ही।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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