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________________ धीरे- धीरे वह सूक्ष्म विषय खो गया और लोगों ने कहना शुरू कर दिया, 'वहां ध्यान करने को क्या है? केवल एक वृक्ष ही है वहां, लेकिन बुद्ध कहां हैं?' क्योंकि अनुपस्थिति में बुद्ध की प्रतीति पाने के लिए बहुत गहरी स्पष्टता और एकाग्रता की आवश्यकता होती है। तब फिर यह अनुभव करते हुए कि अब लोग सूक्ष्म अनुपस्थिति पर ध्यान नहीं कर सकते, प्रतिमाओं का निर्माण कर दिया गया। ऐसा तुम कर सकते हो तुम्हारी किन्हीं भी इंद्रियों के साथ, क्योंकि लोगों के पास विभिन्न क्षमतायें और संवेदन शक्तियां होती हैं। उदाहरण के लिए, यदि तुम्हारे पास संगीतप्रिय कान हों, तो यह अच्छा होता है पक्षी के गाने पर ध्यान देना और उसके प्रति सतर्क होना, एकाग्र होना। कुछ क्षणों तक वह वहां होता है और फिर वह जा चुका होता है। तब ध्यान करना अनुपस्थिति पर। अकस्मात विषय बहुत सूक्ष्म हो चुका होता है। पक्षी के वास्तविक गाने की अपेक्षा इसमें ज्यादा ध्यान और ज्यादा सजगता की आवश्यकता होगी। यदि तुम्हारे पास संवेदनशील नाक है-बहुत थोड़े से लोगों के पास होती है; मानवता अपनी नाक लगभग बिलकुल ही खो चुकी है। पशु बेहतर हैं, उनकी घ्राण-शक्ति कहीं ज्यादा संवेदनशील है, ज्यादा क्षमतापूर्ण है आदमी से। आदमी की नाक को कुछ हो गया है, कुछ गलत घट गया है। बहुत थोड़े से आदमियों के पास संवेदनशील नाक होती है। लेकिन यदि तुम्हारे पास है तो जरा नजदीक रहना फूल के। सुवास भरने देना स्वयं में। फिर, धीरे-धीरे सरकते जाना फूल से दूर, बहुत धीमे से, लेकिन महक के प्रति, सुवास के प्रति सचेत रहना जारी रखना। जैसे-जैसे तुम दूर होते जाते हो, सुवास अधिकाधिक सूक्ष्म होती जायेगी, और तुम्हें ज्यादा जागरूकता की आवश्यकता होगी, उसे अनुभव करने के लिए नाक ही बन जाना। भूल जाना सारे शरीर के बारे में और अपनी सारी ऊर्जा ले आना नाक तक, जैसे कि केवल नाक का ही अस्तित्व हो। यदि तुम खो देते हो गंध का बोध, तो फिर कुछ कदम और आगे बढ़ना; फिर पकड़ लेना गंध को। फिर आ जाना पीछे, पीछे की ओर। धीरे-धीरे तुम बहुत, बहुत दूर से फूल को सूंघने योग्य हो जाओगे। कोई और दूसरा वहां से सूंघ नहीं पाएगा फूल को। फिर और दूर हटते चले जाना। बहत सीधे-सरल ढंग से तुम विषय को सूक्ष्म बना रहे होते हो। फिर एक घडी आ जाएगी था व तुम गंध को सूंघ न पाओगे. अब सूंघ लेना अनुपस्थिति को। अब सूंघना उस अभाव को। जहां सुवास अभी कुछ देर पहले थी; अब वह वहां नहीं रही; उसी के अस्तित्व का वह दूसरा हिस्सा है, वह अनुपस्थित हिस्सा, वह अँधेरा हिस्सा। यदि तुम सूंध सको महक की अनुपस्थिति को, यदि तुम अनुभव कर सको कि इससे अंतर पड़ता है-पड़ता ही है। इससे अंतर-तब विषय बहुत सूक्ष्म बन जाता है। अब वह निर्विचार अवस्था के, समाधि की अ-विचार की अवस्था के निकट पहुंच रहा होता है। केवल एक बुद्धपुरुष ने, मोहम्मद ने सुगंधित द्रव्य को ध्यान के विषय की भांति प्रयुक्त किया। इसलाम ने उसे ध्यान का विषय बना लिया। सुंदर है यह बात!
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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