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________________ को जान लिया जाता है, तो प्रार्थना बहुत आसान हो जाती है। वास्तव में, प्रार्थना सीखने की तो कोई जरूरत ही नहीं रहती। यह तो अपने से ही आती है यदि तुम प्रेम करते हो तो। पांचवां प्रश्न : पतंजलि आधुनिक मन की अविश्वसनीय न्यूरोसिस ( विक्षिप्तता) के साथ कैसे कार्य करेंगे? मरी तरह ही! मैं क्या कर रहा हूं यहां पर? -तुम्हारी न्यूरोसिस (विक्षिप्तता) के साथ संघर्ष कर रहा हूं। अहंकार सारी न्यूरोसिस का मूल स्रोत है, क्योंकि अहंकार ही है सारे झूठों का केंद्र, सारे विकारों का केंद्र। सारी समस्या अहंकार की ही होती है। याद तुम बने रहते हो अहंकार के साथ, तो देर-अबेर तुम न्यूरोटिक बन ही जाओगे। तुम बनोगे ही, क्योंकि अहंकार आधारभूत न्युरोसिस। अहंकार कहता है, 'मैं हं संसार का केंद्र', जो कि है मिथ्या, पागल। केवल यदि परमात्मा हो वहां तो वह कह सकता है 'मैं'। हम तो केवल हिस्से हैं, हम नहीं कह सकते 'मैं। यही दावा 'मैं' का, यह न्युरोटिक है।'मैं' को गिरा दो और सारी न्यूरोसिस तिरोहित हो जाती है। तुम्हारे और पागलखाने के पागलों के बीच कोई बड़ा भेद नहीं है। केवल अवस्था या परिमाण का ही अंतर है, किसी गुणवत्ता का अंतर नहीं है। तुम शायद अठानबे डिग्री पर होंगे, और वे एक सौ के पार जा चुके हैं। तुम जा सकते हो किसी समय, अंतर कोई बड़ा नहीं है। पागलखानों में किसी दिन जाना और जरा देखना, क्योंकि वही कुछ बन सकता है तुम्हारा भविष्य भी। देखना जरा पागल आदमी की ओर। क्या घटित हुआ है उसको? वही आशिक तौर पर तुमको घटा है। क्या घटता है पागल आदमी में? –उसका अहंकार इतना वास्तविक हो जाता है कि हर दूसरी चीज झूठ बन जाती है। सारा संसार भ्रममय होता है; केवल उसका आंतरिक संसार, अहंकार और उसका संसार, सत्य होता है। तुम जा सकते हो पागलखाने में किसी मित्र से मिलने, और शायद वह तुम्हारी ओर देखेगा नहीं, वह तुम्हें पहचानेगा भी नहीं। वह सिर्फ बात करेगा अपने उस अदृश्य मित्र से जो कि उसके साथ ही बैठा हुआ है। तुम नहीं पहचाने गए, लेकिन उसके मन का एक कल्पित तत्व पहचाना गया है मित्र के रूप में। वह बात कर रहा है और वही उत्तर दे रहा है।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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