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________________ वह नहीं स्वीकार करेगी तुम्हें, यदि कई बार तो तुम समर्पण करते हो और कई बार नहीं करते। प्रार्थना बहुत की मांग करती है। व्यक्ति को गुजरना ही पड़ता है प्रेम से। यदि तुम मुझ से पूछो, तो मैं कहूंगा कि प्रेम पाठशाला है प्रार्थना के लिए-स्म प्रशिक्षण, अनुशासन, ज्यादा ऊंची छलांग लगाने की एक तैयारी। मैं संपूर्ण रूप से हूं प्रेम के पक्ष में। जो कह रहे हो तुम उसके लिए कोशिश की है लोगों ने; सदियों से कोशिश करते आए हैं लोग। लोग जो प्रेम नहीं कर सकते थे उन्होंने कोशिश की है प्रार्थना करने की। सारे मठ, धर्म-स्थान भरे हुए हैं वैसे ही लोगों से प्रेम में असफल व्यक्तियों से। प्रेम में निराश होकर, उन्होंने सोचा कि कम से कम वे प्रार्थना की कोशिश तो कर ही सकते थे। लेकिन यदि तम असफल होते हो प्रेम में, तो कैसे कर सकते हो तुम प्रार्थना? धर्म-स्थानों में, संसार भर में हजारों लोग अपनी प्रार्थनाएं कर रहे हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि प्रेम क्या होता है। तब प्रार्थना बन जाती है मात्र एक शाब्दिक बड़बड़ाहट। तब वे परमात्मा से बातें किए जाते हैं सिर से ही। परमात्मा के साथ संप्रेषण होता है हृदय का। परमात्मा के साथ तुम सिर के द्वारा बात नहीं कर सकते, क्योंकि परमात्मा ऐसी किसी भाषा को नहीं जानता जिसे तुम्हारा सिर जानता हो। वह केवल एक भाषा जानता है, और वह है प्रेम। इसीलिए जीसस कहते हैं, 'प्रेम ईश्वर है', क्योंकि प्रेम एकमात्र मार्ग है उस तक पहुंचने का, और प्रेम एकमात्र भाषा है जिसे वह समझता है। यदि तुम बोलते हो अंग्रेजी में वह नहीं समझेगा। यदि तुम बोलते हो जर्मन में वह बिलकुल नहीं समझेगा। वह पृथ्वी की कोई भाषा नहीं समझता है। यही कहता हूं मैं, 'यदि तुम बोलते हो जर्मन, तो बिलकुल नहीं! '-क्योंकि जर्मन अधिक पुरुषचित्तमयी भाषा है। जर्मन अपने देश को कहते हैं, 'फादरलैंड।' सारा संसार अपने-अपने देश को कहता है, 'मदरलैंड।' जितनी ज्यादा पुरुष-चित्त के अनुकूल होती है कोई भाषा, उसे उतना ही कम समझ सकता है परमात्मा। वस्तत: परमात्मा परुष-चित्त से अधिक स्त्री-चित्त को समझता है, क्योंकि स्त्रीचित्त पुरुष-चित्त की अपेक्षा हृदय के ज्यादा निकट होता है। वह गद्य से ज्यादा पद्य को समझता है। वस्तुत: वह विचारों से ज्यादा भावों को समझता है। वह आसुओ को, मस्कानों को ज्यादा समझ लेता है धारणाओं की अपेक्षा। यदि तुम पूरे हृदय से रो सकते हो तो वह समझ जाएगा। यदि तुम नृत्य कर सकते हो, तो वह समझ लेगा। लेकिन यदि तम शब्दों में बोले चले जाओ तो वे मात्र फेंके जा रहे होते हैं शून्यता में कोई नहीं समझता। परमात्मा समझता है मौन को और प्रेम बहुत मौन होता है। वस्तुत: जब दो व्यक्ति प्रेम में पड़ते हैं तो वे साथ-साथ चुपचाप बैठना चाहेंगे। जब प्रेम तिरोहित हो जाता है, केवल तभी भाषा बीच में चली आती है। पति और पत्नी निरंतर बोलते जाते हैं क्योंकि प्रेम मिट चुका होता है। सेतु अब वहां नहीं रहा तो किसी तरह वे भाषा का सेतु बना लेते हैं। वे किसी भी चीज की बात करते हैं-अफवाहों की, गप्पबाजियों की क्योंकि मौन को वे बरदाश्त नहीं कर सकते। जब कभी वे मौन होते हैं, तो
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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