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________________ फिर होता है तीसरे प्रकार का स्वप्न। यह तीसरे प्रकार का स्वप्न अतिचेतन से आया संकेत है। दूसरे प्रकार का स्वप्न अचेतन से आया संप्रेषण है। तीसरे प्रकार का स्वप्न बहुत विरल होता है, क्योंकि हमने अतिचेतन के साथ सारा संपर्क खो दिया है। लेकिन फिर भी यह उतरता है क्योंकि अतिचेतन तुम्हारा है। हो सकता है कि यह बादल बन चुका हो और आकाश में बढ़ गया हो, विलीन हो गया हो, हो सकता है कि दूरी बहत ज्यादा हो, लेकिन यह अब भी तुममें लंगर डाले हए है। अतिचेतन से आया संप्रेषण बहुत विरल होता है। जब तुम बहुत-बहुत जागरूक हो जाते हो केवल तभी तुम इसे अनुभव करने लगोगे। अन्यथा यह उस धूल में खो जाएगा जिसे मन फेंकता है सपनों में, और खो जाएगा उस आकांक्षापूर्ति में जिसके सपने मन बनाये चला जाता है; वे अधूरी दबी हुई चीजें। यह उनमें खो जाएगा। लेकिन जब तुम जागरूक होते हो तो यह बात हीरे के चमकने जैसी होती है वे सारे कंकड़ जो चारों ओर हैं उनसे नितांत भिन्न। जब तुम अनुभव कर सकते हो और वह स्वप्न पा सकते हो जो कि अतिचेतन से उतर रहा होता है तो उसे देखना, उस पर ध्यान करना; वही तुम्हारा मार्गदर्शन बन जाएगा, वह तुम्हें सद्गुरु तक ले जाएगा, वह तुम्हें ले जाएगा जीवन के उस ढंग तक जो कि तुम्हारे अनुकूल पड़ सकता है, जो तुम्हें ले जाएगा सम्यक् अनुशासन की ओर। वह सपना भीतर एक गहन मार्गदर्शक बन जाएगा। चेतन के साथ तुम ढूंढ सकते हो गुरु को, लेकिन वह गुरु और कुछ नहीं होगा सिवाय शिक्षक के। अचेतन के साथ तुम खोज सकते हो गुरु को, लेकिन गुरु एक प्रेमी से ज्यादा कुछ नहीं होगा-तुम एक निश्चित व्यक्तित्व के, एक निश्चित ढंग के प्रेम में पड़ जाओगे। केवल अतिचेतन तुम्हें सम्यक् गुरु तक ले जा सकता है। तब वह शिक्षक नहीं होता; जो वह कहता है उससे तुम सम्मोहित नहीं होते; जो वह है उसके साथ अंधे सम्मोहन में नहीं पड़ते हो तुम। बल्कि इसके विपरीत तुम निर्देशित होते हो तुम्हारे परमचेतन के द्वारा कि इस व्यक्ति से तुम्हारा तालमेल बैठेगा और विकसित होने के लिए इस व्यक्ति के साथ एक सही संभावना बनेगी तुम्हारे लिए, कि यह आदमी तुम्हारे लिए आधार भूमि बन सकता है। फिर होते हैं. चौथे प्रकार के स्वप्न जो कि आते हैं पिछले जन्मों से। वे बहुत विरल नहीं होते। वे र आते हैं वे। लेकिन हर चीज तुम्हारे भीतर इतनी गड़बड़ी में है कि तुम कोई भेद नहीं कर पाते। तुम वहां होते नहीं भेद समझने को।। घटते पूरब में परिश्रम किया है इस चौथे प्रकार के स्वप्न पर। इसी स्वप्न के कारण हमें प्राप्त हो गयी पुनर्जन्म की धारणा। इस स्वप्न द्वारा धीरे- धीरे तुम जागरूक होते हो पिछले जन्मों के प्रति। तुम जाते हो पीछे और पीछे की ओर अतीतकाल में। तब बहुत सारी चीजें तुममें परिवर्तित होने लगती हैं, क्योंकि यदि तुम्हें स्मरण आ सकता है, सपने में भी कि तुम क्या थे तुम्हारे पिछले जन्म में, बहुत-सी नयी चीजें अर्थहीन हो जाएंगी। सारा ढांचा बदल जाएगा, तुम्हारा रंग-ढंग, गेस्टाल्ट बदल जायेगा।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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