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________________ नाद है, मौन का नाद है। जब हर चीज मौन होती है तब सुनाई पड़ता है वह। तो तुम बन जाते हो श्रोता। यह इसी भांति बढ़ता जाता है, ज्यादा और ज्यादा सूक्ष्म ढंग से। और चौथी अवस्था में तुम भूल ही जाते हो हर चीज को, कर्ता को, श्रोता को, और नाद को-हर चीज को। चौथी अवस्था में वहां कुछ नहीं होता। तुमने देखे होंगे झेन के दस ऑक्सहर्डिंग (बैल की खोज) चित्र। पहले चित्र में एक व्यक्ति खोज रहा है अपने बैल को। बैल कहीं चला गया है घने जंगल में। कहीं कोई चिह्न नहीं, कोई पदचिह्न नहीं। बस चारों ओर देख रहा है, वहां वृक्ष और वृक्ष और वृक्ष हैं। दूसरे चित्र में वह ज्यादा खुश जान पड़ता है-पदचिह्न खोज लिए गए हैं। तीसरे में वह थोड़ा चकित है-बैल की पीठ भर ही वृक्ष के निकट दिखाई दी है, पर फिर भी मुश्किल है भेद कर पाना। जंगल बीहड़ है, घना है। शायद यह एक भ्रम ही हो जो कि वह देख रहा है बैल की पीठ को? हो सकता है वह वृक्ष का हिस्सा भर हो। और शायद वह प्रक्षेपण कर रहा हो। फिर चौथे में, उसने पकड़ ली है बैल की पूंछ। पांचवें में, उसने उसे नियंत्रित कर लिया है। चाबुक के साथ। अब बैल उसके अधीन है। छठे में, वह सवारी कर रहा है बैल की। सातवें में, बैल है गौशाला में और वह है घर में। वह प्रसन्न है, बैल खोज लिया गया है। आठवें में, कछ नहीं है वहां पर; बैल खोज लिया गया। बैल और उसे खोजने वाला, खोजी और जो खोजा गया है, वे दोनों ही तिरोहित हो चुके हैं। तलाश समाप्त हुई। प्राचीन काल में यही आठ चित्र थे। यह एक परा सेट था। शून्यता अंतिम होती है। लेकिन फिर एक बड़े गुरु ने दो चित्र और जोड़ दिए। नौवां : वह व्यक्ति वापस आ गया है। वह फिर से है वहां पर। और दसवें में वह व्यक्ति केवल वापस ही नहीं आया है, वह बाजार में चला गया है, कुछ चीजें खरीदने के लिए। न ही केवल चीजें खरीद रहा है वह, शराब की बोतल भी पकड़ रखी है उसने! यह वस्तुत: ही सुंदर है। यह संपूर्ण है। यदि समाप्ति हो जाती है शून्यता पर, तो कुछ असंपूर्ण रहता है। आदमी फिर वापस लौट आया है, और केवल वापस ही नहीं लौटा है, वह बाजार में है। न ही केवल बाजार में है, उसने खरीद ली है शराब की बोतल। संपूर्णता बनती जाती है अधिकाधिक सूक्ष्म, अधिक और अधिक सूक्ष्म। एक घडी आती है जब तुम अनुभव करोगे सर्वाधिक सूक्ष्म ही संपूर्ण है। जब हर चीज खाली हो जाती है और वहां कोई चित्र नहीं होता, खोजी और खोजा हुआ दोनों मिट चुके होते हैं। लेकिन यही सच्चा अंत नहीं है। अभी भी वहां सूक्ष्मता है। आदमी वापस चला जाता है संसार में समग्र रूप से रूपांतरित होकर। वह अब पुराना व्यक्ति न रहा। बल्कि पुनर्जन्म होता है उसका। और जब तुम पुनजार्वित होते हो तो, संसार भी वही नहीं रहता। मदिरा अब मदिरा न रही, विष अब विष न रहा, बाजार नहीं रहा बाजार। अब हर चीज स्वीकृत हो गई है। यह बात सुदर है। अब वह उत्सव मना रहा है। यही है प्रतीक : वह शराब। तलाश जितनी ज्यादा और ज्यादा सूक्ष्म होती जाती है, और ज्यादा और ज्यादा शक्तिपूर्ण होती जाती है चेतना। और एक क्षण आता है जब चेतना इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि तुम सहज स्वाभाविक
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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